श्रीवत्स

श्रीवत्स का उल्लेख हिन्दू पौराणिक ग्रंथ महाभारत में हुआ है। महाभारत शान्ति पर्व के अनुसार यह भगवान नारायण के वक्ष:स्थल में भगवान शंकर के त्रिशूल से बना चिह्न है।[1]

  • भागवत और विष्णु पुराण के अनुसार यह अगूँठे के बराबर सफेद बालों का एक समूह है, जो भगवान विष्णु के वक्ष:स्थल पर है और दक्षिणावर्त्त भौंरी के आकार का कहा गया है।
  • इसे भृगु ऋषि का पद चिह्न माना जाता है।[2]
  • एक बार सरस्वती के निकट निवास करने वाले तापसों ने ब्रह्मा, विष्ण, शिव- इन त्रिदेवों में कौन अधिक सत्त्वशाली है, इसकी परख करने के लिए भृगु मुनि को भेजा। भृगु मुनि पहले ब्रह्मा के पास गये। वहाँ इनके प्रणाम न करने से ब्रह्मा को क्रोध आया, परंतु तुरंत ही उन्होंने उसे दबा दिया। तब भृगु जी शिव जी के निकट गये। शिव जी भी अनादर करने के कारण मुनि को मार डालने के लिए उद्यत हो गये, परंतु गिरिजा ने उन्हें पकड़ लिया। तत्पश्चात् वे आपके समीप गये। उस समय आप लक्ष्मी की गोद में सिर रखकर शयन कर रहे थे। तब उन विप्रवर ने आप कमलनयन की छाती में चरण-प्रहार किया। जिससे आप परंतु ही उठ पड़े और हर्षपूर्वक यों कहने लगे- ‘मुनिश्रेष्ठ! मेरे सब अपराधों को क्षमा कर दीजिए। आज से आपका यह चरण चिह्न मेरे वक्षःस्थल पर श्रीवत्स नामक आभूषण होकर सदा विराजमान रहेगा।’[3]


टीका टिप्पणी और संदर्भ

पौराणिक कोश |लेखक: राणा प्रसाद शर्मा |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 503 |

  1. महाभारत शान्ति पर्व 342.134
  2. भागवत तथा विष्णु पुराण 10.89.9-12
  3. नारायणीयम पृ. 412

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