श्रीनारायणीयम्
एकोननवतितमदशकम्
एक बार सरस्वती के निकट निवास करने वाले तापसों ने ब्रह्मा, विष्णु, शिव- इन त्रिदेवों में कौन अधिक सत्त्वशाली है, इसकी परख करने के लिए भृगु मुनि को भेजा। भृगु मुनि पहले ब्रह्मा के पास गये। वहाँ इनके प्रणाम न करने से ब्रह्मा को क्रोध आया, परंतु तुरंत ही उन्होंने उसे दबा दिया। तब भृगु जी शिव जी के निकट गये। शिव जी भी अनादर करने के कारण मुनि को मार डालने के लिए उद्यत हो गये, परंतु गिरिजा ने उन्हें पकड़ लिया। तत्पश्चात् वे आपके समीप गये।।7।।
आप लक्ष्मी की गोद में सिर रखकर शयन कर रहे थे। तब उन विप्रवर ने आप कमलनयन की छाती में चरण-प्रहार किया। जिससे आप परंतु ही उठ पड़े और हर्षपूर्वक यों कहने लगे- ‘मुनिश्रेष्ठ! मेरे सब अपराधों को क्षमा कर दीजिए। आज से आपका यह चरण चिह्न मेरे वक्षःस्थल पर श्रीवत्स नामक आभूषण होकर सदा विराजमान रहेगा’ ।।8।। |
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