तक्षक नाग

तक्षक पाताल[1] में निवास करने वाले आठ नागों में से एक है। यह माता कद्रू के गर्भ से उत्पन्न हुआ था तथा इसके पिता कश्यप ऋषि थे। तक्षक 'कोशवश' वर्ग का था।[2]यह काद्रवेय नाग है।[3] माना जाता है कि तक्षक का राज तक्षशिला में था।

  • श्रृंगी ऋषि के शाप के कारण तक्षक ने राजा परीक्षित को डँसा था, जिससे उनकी मृत्यु हो गयी थी। इससे क्रुद्ध होकर बदला लेने की नीयत से परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने सर्पयश किया, जिससे डरकर तक्षक इंद्र की शरण में गया।
  • इस पर जनमेजय की आज्ञा से ऋत्विजों के मंत्र पढ़ने पर इंद्र भी खिंचने लगे, तब इंद्र ने डरकर तक्षक को छोड़ दिया।[4]
  • जब तक्षक अग्निकुण्ड के समीप पहुँचा, तब आस्तीक ऋषि की प्रार्थना पर यज्ञ बंद हुआ और तक्षक के प्राण बचे।
  • यह नाग ज्येष्ठ मास के अन्य गणों के साथ सूर्य रथ पर अधिष्ठित रहता है।[5]
  • यह शिव की ग्रीवा के चारों ओर लिपटा रहता है।[6]
  • पाश्चात्य विद्वानों के अनुसार भारत में तक्षक जाति थी, जिसका जातीय चिह्न सर्प था। इसका युद्ध राजा परीक्षित से हुआ था, जिसमे परीक्षित मारे गये थे। जनमेजय ने तक्षशिला के समीप इन तक्षकों से युद्ध किया और इन्हें परास्त किया था।

महाभारत आदि पर्व[7] के अनुसार, महर्षि शौनक जी ने कहा- "सूतनन्दन! सर्पों को उनकी माता से और विनता देवी को उनके पुत्र से जो शाप प्राप्त हुआ था, उसका कारण आपने बता दिया। कद्रू और विनता को उनके पति कश्यप जी से जो वर मिले थे, वह कथा भी कह सुनायी तथा विनता के जो दोनों पुत्र पक्षी रूप में प्रकट हुए थे, उनके नाम भी आपने बताये हैं। किंतु सूतपुत्र! आप सर्पों के नाम नहीं बता रहे हैं। यदि सबका नाम बताना सम्भव न हो, तो उनमें जो मुख्य-मुख्य सर्प हैं, उन्हीं के नाम हम सुनना चाहते हैं।"

उग्रश्रवा जी ने कहा- "तपोधन! सर्पों की संख्या बहुत है; अतः उन सबके नाम तो नहीं कहूँगा, किंतु उनमें जो मुख्य-मुख्य सर्प हैं, उनके नाम मुझसे सुनिये। नागों में सबसे पहले शेष जी प्रकट हुए हैं। तदनन्तर वासुकि, ऐरावत, तक्षक, कर्कोटक, धनंजय, कालिय, मणिनाग, आपूरण, पिञजरक, एलापत्र, वामननील, अनील, कल्माष, शबल, आर्यक नाग, उग्रक नाग, कलशपोतक, सुमनाख्य नाग, दधिमुख, विमलपिण्डक नाग, आप्त, कर्कोटक (द्वितीय), शंख, वालिशिख, निष्टानक, हेमगुह नाग, नहुष, पिंगल नाग, बाह्मकर्ण, हस्तिपद, मुद्ररपिण्डक, कम्बल, अश्वतर नाग, कालीयक नाग, वृत्त नाग, संवतर्क, पह्म (प्रथम), पह्म (द्वितीय), शंखमुख, कूष्माण्डक नाग, क्षेमक, पिण्डारक नाग, करवीर, पुष्पदंष्ट्र नाग, बिल्वक, बिल्वपाण्डुर, मूषकाद, शंखशिरा नाग, पूर्णभद्र नाग, हरिद्रक, अपराजित, ज्योतिक नाग, श्रीवह नाग, कौरव्य, धृतराष्ट्र, पराक्रमी शंखपिण्ड, विरजा, सुबाहु, वीर्यवान शालिपिण्ड, हस्तिपिण्ड नाग, पिठरक नाग, सुमुख, कोणपाशन नाग, कुठर नाग, कुंजर, प्रभाकर, कुमुद, कुमुदाक्ष नाग, तित्तिरि नाग, हलिक नाग, महानाग कर्दम, बहुमूलक, कर्कर नाग, अकर्कर, कुण्डोदर और महोदर- ये नाग उत्पन्न हुए।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाताल
  2. भागवत पुराण, 5.24.29; ब्रह्म पुराण, 2.17.34, 20.24; मत्स्य पुराण, 6.39, 8.7; वायु पुराण, 39.54, 50.23, 54.11, 69
  3. विष्णु पुराण, 1.21
  4. भागवत पुराण, 12.6.16-13
  5. भागवत पुराण, 12.11.35
  6. ब्रह्माण्ड पुराण, 2.25.88; मत्स्य पुराण, 154.444
  7. महाभारत आदि पर्व अध्याय 35 श्लोक 1-19

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