पितृतीर्थ का उल्लेख हिन्दू पौराणिक महाकाव्य महाभारत में हुआ है। 'महाभारत अनुशासन पर्व' के अनुसार अंगूठे का अन्तराल (मूल स्थान) 'ब्राह्यतीर्थ', कनिष्ठा आदि अंगुलियों का पश्चाद्भाग (अग्रभाग) 'देवतीर्थ' तथा अंगुष्ठ और तर्जनी के मध्य भाग को 'पितृतीर्थ' कहते हैं। उसके द्वारा शास्त्रविधि से जल लेकर सदा पितृकार्य करना चाहिये।[1]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
महाभारत शब्दकोश |लेखक: एस.पी. परमहंस |प्रकाशक: दिल्ली पुस्तक सदन, दिल्ली |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 70 |