वास्तुकला

वास्तुकला किसी स्थान को मानव के लिए वासयोग्य बनाने की कला है। अत: कालांतर में यह चाहे जितनी जटिल हो गई हो, इसका आरंभ मौसम की उग्रता, वन्य पशुओं के भय और शत्रुओं के आक्रमण से बचने के प्रारंभिक उपायों में ही हुआ। मानव सभ्यता के इतिहास का भी कुछ ऐसा ही आरंभ है।

  • वास्तुकला भवनों के विन्यास, आकल्पन और रचना, परिवर्तनशील समय, तकनीक और रुचि के अनुसार मानव की आवश्यकताओं को संतुष्ट करने योग्य सभी प्रकार के स्थानों के तर्कसंगत एवं बुद्धिसंगत निर्माण की कला को कहते हैं।
  • विज्ञान तथा तकनीक का संमिश्रण वास्तुकला की परिभाषा में आता है। इसका और भी स्पष्टीकरण किया जा सकता है। वास्तुकला ललित कला की वह शाखा रही है, जिसका उद्देश्य औद्योगिकी का सहयोग लेते हुए उपयोगिता की दृष्टि से उत्तम भवन-निर्माण करना है, जिनके पर्यावरण सुसंस्कृत एवं कलात्मक रुचि के लिए अत्यंत प्रिय, सौंदर्य-भावना के पोषक तथा आनंदवर्धक हों।

वास्तुकला का आधार

इसमें संदेह नहीं कि वास्तुकला का आधार इमारतें हैं, किंतु यह इमारतें खड़ी करने के अतिरिक्त कुछ और भी हैं, जैसे कविता गद्य रचना के अतिरिक्त कुछ और भी है। मीठे स्वर में गाए जाने पर कविता प्रभावशाली होती ही है, किंतु जब उसके साथ उपयुक्त संगीत और लययुक्त नृत्य चेष्टाएँ भी होती हैं, तब वह केवल मनुष्य के हृदय की और विभिन्न इंद्रियों को ही आकर्षित नहीं करती, अपितु इनके गौरवपूर्ण मेल से निर्मित सारे वातावरण से ही उसे अवगत कराती हैं।



टीका टिप्पणी और संदर्भ

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