प्लक्षावतरण महाभारत, वनपर्व के अनुसार सरस्वती नदी के निकट और यमुना पर स्थित कोई तीर्थ जान पड़ता है, जो कुरुक्षेत्र के पास था।
'सरस्वती महापुण्या ह्लादिनी तीर्थम-लिनी, समुद्रगा महावेगा यमुना यत्र पांडव। यत्र पुण्यतरं तीर्थ प्लक्षावतरणं शुभम्, यत्र सारस्वतैरिष्ट्वा गच्छन्त्यवभृथैर्द्विजा:'[1]
एतत् प्लक्षावतरणं यमुनातीर्थमुत्तमम् एतद् वै नाक्पृष्ठस्य द्वारमाहुर्मनीषिण:'[2]
- कुरुक्षेत्र का वनपर्व[3] में उल्लेख हुआ है।
- महाभारत के इस प्रसंग में प्लक्षावतरण में महर्षियों द्वारा किए गए सारस्वत यज्ञों का उल्लेख है।
- राजा भरत ने धर्मपूर्वक वसुधा का राज्य पाकर यहाँ बहुत से यज्ञ किए थे और 'अश्वमेध यज्ञ' के उद्देश्य से इस स्थान पर कृष्णमृग के समान श्यामवर्ण अश्व को पृथ्वी पर भ्रमण करने के लिए छोड़ा था।
- इसी तीर्थ में महर्षि संवर्त से अभिपालित महाराज मरुत्त ने उत्तम सत्र का अनुष्ठान किया था-
'अत्र वै भरतो राजा राजन् क्रुतुभिरिष्टवान् ह्यमेधेन यज्ञेन मेघ्यमश्वमवासृजत। असकृत कृष्ण सारंगं धर्मेणाप्य च मेदिनीभ, अत्रैव पुरुषव्याघ्र मरुत: सत्रमुत्तमम्, प्राप चैवर्षिमुख्येन संर्वेतनाभिपालित:'[4]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ महाभारत, वनपर्व 90, 3, 4.
- ↑ महाभारत, वनपर्व 129, 13.
- ↑ वनपर्व 129, 11
- ↑ महाभातर, वनपर्व 129, 15-16-17.