अनुशासन पर्व महाभारत

महाभारत के पर्व

अनुशासन पर्व में कुल मिलाकर 168 अध्याय हैं। अनुशासन पर्व के आरम्भ में 166 अध्याय दान-धर्म पर्व के हैं। इस पर्व में भी भीष्म के साथ युधिष्ठिर के संवाद का सातत्य बना हुआ है। भीष्म युधिष्ठिर को नाना प्रकार से तप, धर्म और दान की महिमा बतलाते हैं और अन्त में युधिष्ठिर पितामह की अनुमति पाकर हस्तिनापुर चले जाते हैं। भीष्मस्वर्गारोहण पर्व में केवल 2 अध्याय[1] हैं। इसमें भीष्म के पास युधिष्ठिर का जाना, युधिष्ठिर की भीष्म से बात, भीष्म का प्राणत्याग, युधिष्ठिर द्वारा उनका अन्तिम संस्कार किए जाने का वर्णन है। इस अवसर पर वहाँ उपस्थित लोगों के सामने गंगा जी प्रकट होती हैं और पुत्र के लिए शोक प्रकट करने पर श्री कृष्ण उन्हें समझाते हैं।

भीष्म का उपदेश

युधिष्ठिर ने भीष्म के चरण-स्पर्श किए। भीष्म ने युधिष्ठिर को तरह-तरह के उपदेश दिए। उन्होंने कहा कि पुरुषार्थ ही भाग्य है। राजा का धर्म है-पूरी शक्ति से प्रजा का पालन करें तथा प्रजा के हित के लिए सब कुछ त्याग दे। जाति और धर्म के विचार से ऊपर उठकर सबके प्रति सद्भावना रखकर प्रजा का पालन तथा शासन करना चाहिए। युधिष्ठिर भीष्म को प्रणाम करके चले गए।

भीष्म का महाप्रयाण

सूर्य उत्तरायण हो गया। उचित समय जानकर युधिष्ठिर सभी भाइयों, धृतराष्ट्र, गांधारी एवं कुंती को साथ लेकर भीष्म के पास पहुँचे। भीष्म ने सबको उपदेश दिया तथा अट्ठावन दिन तक शर-शैय्या पर पड़े रहने के बाद महाप्रयाण किया। सभी रोने लगे। युधिष्ठिर तथा पांडवों ने पितामह के शरविद्ध शव को चंदन की चिता पर रखा तथा अंतिम संस्कार किया।

परीक्षित का जन्म

युधिष्ठिर ने कुशलता से राज्य का संचालन किया। कुछ समय बाद उत्तरा को मृत-पुत्र पैदा हो गया। सुभद्रा मूर्च्छित होकर कृष्ण के चरणों में गिर पड़ी। द्रौपदी भी बिलख-बिलखकर रोने लगी। कृष्ण ने अपने तेज़ से उस मृत शिशु को ज़िंदा कर दिया।

अनुशासन पर्व के अन्तर्गत 2 उपपर्व हैं-

  • दान-धर्म-पर्व,
  • भीष्मस्वर्गारोहण पर्व।

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  1. 167 और 168

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