इंद्रप्रस्थ की स्थापना

पाँचों पांडवो का विवाह राजा यज्ञसेन द्रुपद की पुत्री द्रौपदी से होने का समाचार सुनते ही धृतराष्ट्र ने उन्हें हस्तिनापुर वापस बुलाने विदुर को भेजा। और उनका स्वागत किया।

विदुर का पांडवों को हस्तिनापुर लाना

पांडवों के लाक्षागृह से बच निकलने तथा द्रौपदी के विवाह का समाचार चारों ओर फैल गया। धृतराष्ट्र इस समाचार से प्रसन्न नहीं थे, पर बाहरी प्रसन्नता प्रकट कर रहे थे। भीष्म और द्रोणाचार्य ने पांडवों को वापस बुलाने का मत प्रकट किया। यद्यपि दुर्योधन और कर्ण ने इसका विरोध किया, पर विदुर की सलाह पर धृतराष्ट्र ने उन्हीं को पांडवों को लाने पांचाल भेजा। पांडवों की वापसी पर नगर-निवासियों ने बड़े हर्ष से उनका स्वागत किया।

युधिष्ठिर सहित सपरिवार का खांडवप्रस्थ जाना

धृतराष्ट्र ने उन्हें आधा राज्य देकर सलाह दी कि कलह से बचने के लिए हस्तिनापुर छोड़कर खांडवप्रस्थ को अपनी राजधानी बना लें। धृतराष्ट्र की आज्ञा मानकर युधिष्ठिर सपरिवार खांडवप्रस्थ आ गए तथा वहाँ उन्होंने नई राजधानी बसाई जिसका नाम इंद्रप्रस्थ रखा। तेरह वर्ष तक सुखपूर्वक उन्होंने राज्य किया।



टीका टिप्पणी और संदर्भ

महाभारत शब्दकोश |लेखक: एस. पी. परमहंस |प्रकाशक: दिल्ली पुस्तक सदन, दिल्ली |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 144 |


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