बकासुर संहार

भीमसेन बकासुर का वध करते हुए

बकासुर नामक असुर का उल्लेख महाभारत में हुआ है। एकचक्रा नगरी का शासक दुर्बल था, अत: वहाँ बकासुर का आंतक छाया हुआ था वह नरभक्षी था। उसका वध पांडू पुत्र भीम ने किया था

पांडवों की महर्षि व्यास से भेंट

हिडिम्ब वध के बाद वन-मार्ग पर चलते-चलते एक दिन पांडवों की भेंट महर्षि व्यास से हुई। महर्षि व्यास ने पांडवों को ढाँढ़स बँधाया तथा उन्हीं की सलाह पर पांडव ब्रह्मचारियों का वेश धारण कर एकचक्रा नाम की नगरी में एक ब्राह्मण के घर रहने लगे।

भिक्षा माँगकर भरण पोषण करना

पाँचों भाई भिक्षा माँगकर लाते तथा उसी को बाँटकर अपना पेट भरते थे। एक दिन भीम घर पर रह गए। तभी कुंती ने अपने आश्रयदाता ब्राह्मण के घर रोने की आवाज सुनी। पूछने पर पता चला कि बक नाम का एक राक्षस नगर के पास ही एक गुफा में रहता है, जो लोगों को जहाँ भी देखता, मारकर खा जाता था। नगरवासियों ने उससे तंग आकर एक दिन समझौता कर लिया कि हर सप्ताह उसकी गुफा में गाड़ी भरकर मांस, मदिरा, पकवान आदि भेज दिया जाएगा तथा गाड़ीवान भी उसी खुराक में शामिल होगा। उस दिन गाड़ीवान के रूप में उस ब्राह्मण को जाना था। वहाँ पहुँचकर वह कभी जिंदा वापस नहीं आ सकेगा, इसीलिए घर के सभी लोग रो रहे हैं। कुंती ने ब्राह्मण को धीरज बँधाया तथा कहा कि उसकी जगह मेरा पुत्र भीम चला जाएगा तथा बकासुर उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकेगा।

भीम का बकासुर के पास जाना

भीम भोजन तथा पकवान से भरी गाड़ी लेकर राक्षस की गुफा तक पहुँचा तथा उसने उससे अपनी पेट-पूजा शुरू कर दी। बकासुर ने गुफा से देखा कि एक विशाल शरीर वाला मुनष्य उसके भोजन को खा रहा है। वह भीम से भिड़ गया। भीम ने उसे लात-घूँसे मार-मारकर जान से मार डाला तथा उसकी लाश को नगर-द्वार तक ले आए। नगरवासियों की प्रसन्नता की सीमा न रही।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

महाभारत शब्दकोश |लेखक: एस. पी. परमहंस |प्रकाशक: दिल्ली पुस्तक सदन, दिल्ली |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 143 |


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