अर्जुन द्वारा मत्स्य भेदन

अर्जुन द्रौपदी के स्वयंवर में निशाना साधते हुए

एकचक्रा नगरी में रहते हुए पांडवों ने पांचाल देश के राजा यज्ञसेन द्रुपद की पुत्री द्रौपदी के स्वयंवर का समाचार सुना। तभी वहाँ व्यासजी भी आ गए। उनकी सलाह पर माता कुंती को साथ लेकर पांडव स्वयंवर देखने चल पड़े।

अर्जुन का निशाना साधना

एक-एक करके अनेक राजाओं ने प्रयास किया, पर कोई भी मछली की आँख को नहीं वेध सका। कर्ण निशाना साधने चला, पर सूतपुत्र कहे जाने के कारण उसे बैठ जाना पड़। अंत में ब्राह्मण वेशधारी अर्जुन ने एक ही तीर से मछली की आँख वेध दी। उपस्थित राजाओं की शंका पर अर्जुन ने दूसरी बार निशाना लगाकर मछली को ही नीचे गिरा दिया।

द्रौपदी अर्जुन विवाह

द्रौपदी ने अर्जुन के गले में वरमाला पहना दी। कुछ राजाओं ने ब्राह्मण वेशधारी से द्रौपदी को छीनने का प्रयास किया, पर जब भीम एक विशाल पेड़ उखाड़कर ले आए तो उनका साहस टूट गया। जब द्रौपदी तथा धृष्टद्युम्न को पता चला उसने अर्जुन का वरण किया है, तो उसकी प्रसन्नता की सीमा न रही।

द्रौपदी का पाँचो भाइयों से विवाह

घर पहुँचकर अर्जुन ने बाहर से ही माँ को बताया कि देखो कितनी अच्छी चीज़ लाया हूँ, तो भीतर से ही माता कुंती ने उत्तर दिया कि जो लाए हो, पाँचों भाई बाँट लो। माता कुंती ने जैसे ही बाहर आकर देखा तो असमंजस में पड़ गई, पर अर्जुन ने कहा कि माँ, तुम्हारा वचन मिथ्या नहीं होगा तथा द्रौपदी से पाँचों भाइयों का विवाह होगा।

भगवान शंकर द्वारा द्रौपदी को वरदान

जब द्रुपद ने सुना कि द्रौपदी का विवाह पाँचों पांडवों से होगा, तो बड़े चिंतित हुए। उसी समय महर्षि व्यास आ गए तथा उन्होंने द्रौपदी के पूर्व जन्म की कथा सुनाकर बताया कि उसे शंकर से पाँच पतियों का वरदान मिला है। इस प्रकार द्रौपदी से पाँचों पांडवों का विवाह हो गया।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

महाभारत शब्दकोश |लेखक: एस. पी. परमहंस |प्रकाशक: दिल्ली पुस्तक सदन, दिल्ली |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 144 |


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