पिण्डारक नाग

Disamb2.jpg पिण्डारक एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- पिण्डारक (बहुविकल्पी)

पिण्डारक का उल्लेख हिन्दू पौराणिक महाकाव्य महाभारत में हुआ है, जिसके अनुसार यह जनमेजय के सर्पयज्ञ में जले एक साँप का नाम था।[1]


महाभारत आदि पर्व[2] के अनुसार, महर्षि शौनक जी ने कहा- "सूतनन्दन! सर्पों को उनकी माता से और विनता देवी को उनके पुत्र से जो शाप प्राप्त हुआ था, उसका कारण आपने बता दिया। कद्रू और विनता को उनके पति कश्यप जी से जो वर मिले थे, वह कथा भी कह सुनायी तथा विनता के जो दोनों पुत्र पक्षी रूप में प्रकट हुए थे, उनके नाम भी आपने बताये हैं। किंतु सूतपुत्र! आप सर्पों के नाम नहीं बता रहे हैं। यदि सबका नाम बताना सम्भव न हो, तो उनमें जो मुख्य-मुख्य सर्प हैं, उन्हीं के नाम हम सुनना चाहते हैं।"

उग्रश्रवा जी ने कहा- "तपोधन! सर्पों की संख्या बहुत है; अतः उन सबके नाम तो नहीं कहूँगा, किंतु उनमें जो मुख्य-मुख्य सर्प हैं, उनके नाम मुझसे सुनिये। नागों में सबसे पहले शेष जी प्रकट हुए हैं। तदनन्तर वासुकि नाग, ऐरावत, तक्षक, कर्कोटक, धनंजय, कालिय, मणिनाग, आपूरण, पिञजरक, एलापत्र, वामननील, अनील, कल्माष, शबल, आर्यक नाग, उग्रक नाग, कलशपोतक, सुमनाख्य नाग, दधिमुख, विमलपिण्डक नाग, आप्त, कर्कोटक (द्वितीय), शंख, वालिशिख, निष्टानक, हेमगुह नाग, नहुष, पिंगल नाग, बाह्मकर्ण, हस्तिपद, मुद्ररपिण्डक, कम्बल, अश्वतर नाग, कालीयक नाग, वृत्त नाग, संवतर्क, पह्म (प्रथम), पह्म (द्वितीय), शंखमुख, कूष्माण्डक नाग, क्षेमक, पिण्डारक नाग, करवीर, पुष्पदंष्ट्र नाग, बिल्वक, बिल्वपाण्डुर, मूषकाद, शंखशिरा नाग, पूर्णभद्र नाग, हरिद्रक, अपराजित, ज्योतिक नाग, श्रीवह नाग, कौरव्य, धृतराष्ट्र, पराक्रमी शंखपिण्ड, विरजा, सुबाहु, वीर्यवान शालिपिण्ड, हस्तिपिण्ड नाग, पिठरक नाग, सुमुख, कोणपाशन नाग, कुठर नाग, कुंजर, प्रभाकर, कुमुद, कुमुदाक्ष नाग, तित्तिरि नाग, हलिक नाग, महानाग कर्दम, बहुमूलक, कर्कर नाग, अकर्कर, कुण्डोदर और महोदर- ये नाग उत्पन्न हुए।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत शब्दकोश |लेखक: एस.पी. परमहंस |प्रकाशक: दिल्ली पुस्तक सदन, दिल्ली |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 71 |
  2. महाभारत आदि पर्व अध्याय 35 श्लोक 1-19

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