धौम्य

धौम्य उत्कोच नामक तीर्थ में रहने वाले एक ऋषि थे, जो देवल के भाई तथा पांडवों के पुरोहित थे। चित्ररथ के आदेश से युधिष्ठिर ने धौम्य को अपना पुरोहित बनाया था और यह युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में भी थे।[1] अब धौम्य पश्चिमी आकाश में स्थित एक तारे के रूप में माने जाते हैं।

  • धौम्य के साथ ही शरशैय्या पर पड़े हुए भीष्म से युधिष्ठिर मिलने गये थे।[2]
  • श्रीकृष्ण के हस्तिनापुर से चले जाने पर धौम्य बड़े दु:खी हुए थे।[3]
  • महाभारत अनुशासनपर्व के अनुसार धौम्य व्याघ्रपद नामक ऋषि के पुत्र, बड़े शिवभक्त और सत्ययुग में वर्तमान थे। बाल्यकाल में ही माता के रुष्ट होने के कारण शिव की कृपा से तथा तपोबल के आधार पर ये दिव्यज्ञानी हो गये थे।[4]
  • शांतिपर्व के उल्लेख में धौम्य ऋषि को एक तारा कहा गया है, जो पश्चिम दिशा में स्थित है। महाभारत में उषंगु, कवि और परिव्याध के साथ इनका भी नाम आया है।[5]
  • धौम्य नामक एक ऋषि का उल्लेख महाभारत उद्योगपर्व में भी हुआ है, जहाँ इन्हें 'आयोद' भी कहा गया है। आरुणि, उपमन्यु और वेद नाम के इनके पुत्र थे।[6]
  • पुराण वर्णित एक कथा के अनुसार इनके आश्रम में आरुणि पढ़ा करते थे। आरुणि ने ही एक रात मूसलाधार बारिश के पानी को आश्रम में प्रवेश करने से रोकने के लिए खुद को रात भर मेढ़ पर लिटाए रखा। आरुणि के इस कठिन कर्म से प्रभावित होकर आचार्य धौम्य ने उनका नाम रख दिया- उद्दालक आरुणि यानि उद्धारक आरुणि

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भागवतपुराण 10.10;12.14
  2. भागवतपुराण 1.9.2
  3. भागवतपुराण 1.10.10;12.14
  4. महाभारत अनुशासनपर्व 14.45
  5. महाभारत शान्तिपर्व 208.30
  6. महाभारत उद्योगपर्व दाक्षिणात्य पाठ 83.64 के अंतर

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