शाख (कार्तिकेय मूर्ति)

Disamb2.jpg शाख एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- शाख (बहुविकल्पी)

शाख का उल्लेख हिन्दू पौराणिक ग्रंथ महाभारत में हुआ है। 'महाभारत आदि पर्व' के अनुसार यह कुमार कार्तिकेय की एक मूर्ति थी।

'महाभारत शल्य पर्व'[1] में कुमार कार्तिकेय का प्राकट्य और उनके अभिषेक का वर्णन है। यहाँ उल्लेख मिलता है कि बृहस्पति ने बालक कार्तिकेय के जातकर्म आदि संस्कार किये और चार स्वरूपों में अभिव्यक्त होने वाला वेद हाथ जोड़कर उनकी सेवा में उपस्थित हुआ। असंख्य देवी-देवता बालक के दर्शनार्थ आये हुए थे।

बालक होने पर भी बलशाली एवं महान योगबल से सम्पन्न कुमार त्रिशूल और पिनाक धारण करने वाले देवेश्वर भगवान शिव की ओर चले। उन्हें आते देखकर ब्राह्मी, माहेश्वरी, वैष्णवी, कौमारी, इन्द्रणी, वाराही तथा चामुण्डा-ये सात मातृकाएं और भगवान शंकर, गिरिराज नन्दिनी उमा, गंगा और अग्निदेव के मन में यह संकल्प उठा कि देखें यह बालक पिता-माता का गौरव प्रदान करने के लिये पहले किसके पास जाता है? क्या यह मेरे पास आयेगा? यह प्रश्न उन सबके मन में उठा। तब उन सबके अभिप्राय को लक्ष्य करके कुमार ने एक ही साथ योगबल का आश्रय ले अपने अनेक शरीर बना लिये। तदनन्तर प्रभावशाली भगवान स्कन्द क्षण भर में चार रूपों में प्रकट हो गये। पीछे जो उनकी मूर्तियां प्रकट हुईं, उनका नाम क्रमशः शाख, विशाख और नैगमेय हुआ। इस प्रकार अपने आपको चार स्वरूपों में प्रकट करके अदभुत दिखायी देने वाले प्रभावशाली भगवान स्कन्द जहाँ रुद्र थे, उधर ही गये। 'विशाख' उस ओर चल दिये, जिस ओर गिरिराजनन्दिनी उमा देवी बैठी थीं। वायुमूर्ति 'भगवान शाख' अग्नि के पास और अग्नितुल्य तेजस्वी 'नैगमेय' गंगा जी के निकट गये।[2]


टीका टिप्पणी और संदर्भ

महाभारत शब्दकोश |लेखक: एस. पी. परमहंस |प्रकाशक: दिल्ली पुस्तक सदन, दिल्ली |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 105 |

  1. महाभारत शल्य पर्व अध्याय 44 श्लोक 1-19
  2. महाभारत शल्य पर्व अध्याय 44 श्लोक 20-40

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