केतु | एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- केतु (बहुविकल्पी) |
केतु पुराणानुसार एक राक्षस का सिर रहित धड़ था। समुद्रमंथन से उत्पन्न अमृत बांटने के समय यह देवताओं की पंक्ति में बैठकर अमृत पान कर गया था। इससे अप्रसन्न होकर विष्णु ने इसका सिर काट डाला, पर अमृत के प्रभाव से सिर कटने के बाद भी वह मरा नहीं।
- भगवान विष्णु के चक्र से कटने पर सिर राहु कहलाया और धड़ केतु के नाम से प्रसिद्ध हुआ। केतु राहु का ही कबन्ध है। राहु के साथ केतु भी ग्रह बन गया। मत्स्य पुराण के अनुसार केतु बहुत-से हैं, उनमें धूमकेतु प्रधान है।
- इसके रथ के घोड़े घूमर [1] रंग के हैं।[2]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
पौराणिक कोश |लेखक: राणा प्रसाद शर्मा |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 130 |
- ↑ पराल-के धुँए की सी आभा वाले
- ↑ ब्रह्माण्ड पुराण 2.23.90;24.136-39;मत्स्य पुराण 93.10;127.11; वायु पुराण 52.82;111.5; विष्णु पुराण 2.12.23