देवावृध

देवावृध पौराणिक ग्रंथों और हिन्दू मान्यताओं के अनुसार कृष्ण वंशावली में हुए प्रसिद्ध राजा थे। इन्होंने घोर तपस्या के बाद पर्णाशा से विवाह किया था, जिससे इन्हें 'बभ्रू' नामक परम तेजस्वी पुत्र प्राप्त हुआ था।

  • राजा देवावृध बन्धुओं के साथ सुदृढ़ मैत्री के प्रवर्धक थे, परंतु उनके कोई पुत्र न था। उन्होंने- 'मुझे सम्पूर्ण सद्गुणों से सम्पन्न पुत्र पैदा हो', ऐसी अभिलाषा से युक्त होकर अत्यन्त घोर तप किया।
  • देवावृध ने घोर तपस्या के बाद मन्त्र को संयुक्त कर पर्णाशा नदी के जल का स्पर्श किया। इस प्रकार स्पर्श करने के कारण पर्णाशा नदी राजा का प्रिय करने का विचार करने लगी। वह श्रेष्ठ नदी उस राजा के कल्याण की चिन्ता से व्याकुल हो उठी।
  • पर्णाशा इस निश्चय पर पहुँची कि- "मैं ऐसी किसी दूसरी स्त्री को नहीं देख पा रही हूँ, जिसके गर्भ से इस प्रकार का[1] पुत्र पैदा हो सके, इसलिये आज मैं स्वयं ही हज़ारों प्रकार का रूप धारण करूँगी।" तत्पश्चात् पर्णाशा ने परम सुन्दर शरीर धारण करके कुमारी रूप में प्रकट होकर राजा को सूचित किया। तब महान व्रतशाली राजा ने उसे पत्नीरूप से स्वीकार कर लिया। तदुपरान्त नदियों में श्रेष्ठ पर्णाशा ने राजा देवावृध के संयोग से नवें महीने में सम्पूर्ण सद्गुणों से सम्पन्न बभ्रु नामक पुत्र को जन्म दिया।


Seealso.jpg इन्हें भी देखें: कृष्ण वंशावली

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. राजा की अभिलाषा के अनुसार

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