कोई भी परालौकिक शक्ति का पात्र, जो अमर और पराप्राकृतिक है और इसलिये पूजनीय है, उसे ही 'देवता' या 'देव' कहा जाता है। हिन्दू धर्म में देवताओं को या तो परमेश्वर (ब्रह्म) का लौकिक रूप या फिर उन्हें ईश्वर का सगुण रूप माना जाता है।
- 'देव' शब्द में 'तल्' प्रत्यय लगाकर 'देवता' शब्द की व्युत्पत्ति होती है। अत: दोनों में अर्थ-साम्य है।
- निरूक्तकार ने इसकी व्याख्या करते हुए कहा है कि- "जो कुछ देता है वही देवता है अर्थात देव स्वयं द्युतिमान हैं- शक्तिसंपन्न हैं- किंतु अपने गुण वे स्वयं अपने में समाहित किये रहते हैं; जबकि देवता अपनी शक्ति, द्युति आदि संपर्क में आये व्यक्तियों को भी प्रदान करते हैं।"
- देवता देवों से अधिक विराट हैं, क्योंकि उनकी प्रवृत्ति अपनी शक्ति, द्युति, गुण आदि का वितरण करने की होती है।
- जब कोई देव दूसरे को अपना सहभागी बना लेता है, वह देवता कहलाने लगता है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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