शत्रुन्तप

शत्रुन्तप हिन्दू पौराणिक महाकाव्य महाभारत के अनुसार एक वीर योद्धा था, जिसने विराट युद्ध में कौरवों की ओर से भाग लिया था। बृहन्नला के रूप में अर्जुन के हाथों यह वीरगति को प्राप्त हुआ।

जब पांडव अपने एक वर्ष के अज्ञातवास का समय विराट नगर में व्यतीत कर रहे थे, तब अज्ञातवास के अंतिम दिनों में कौरव सेना ने विराट नगर पर आक्रमण किया। बृहन्नला के रूप में अर्जुन ने राजकुमार उत्तर के सारथित्व में युद्ध लड़ा। उनका कर्ण के साथ घोर युद्ध हुआ। अर्जुन के विशाल घोड़े वायु के समान वेगशाली थे। उनकी जीन के नीचे लगे हुए कपड़े के पिछले दोनों छोर सुनहरे थे। विराट पुत्र उत्तर ने तेजी से हाँककर उन घोड़ों के द्वारा कौरव रथियों की सेना को कुचलते हुए पाण्डुनन्दन अर्जुन को सेना के मध्य भाग में पहुँचा दिया। इतने में ही चित्रसेन, संग्रामजित, शत्रुसह तथा जय आदि महारथी विपाठ नामक बाणों की वर्षा करते हुए कर्ण की रक्षा करने के उद्देश्य से वहाँ आक्रमण करने वाले अर्जुन के सामने आ डटे।

तब कुरुश्रेष्ठ वीरवर अर्जुन क्रोध से युक्त हो आग बबूले हो गये। धनुष मानो उस आग की ज्वाला थी और बाणों का वेग ही आँच बन गया था। जैसे आग वन को जला डालती है, उसी प्रकार वे उन कुरुश्रेष्ठ महारथियों के रथ समूहों को भस्म करने लगे। इस प्रकार घोर युद्ध छिड़ जाने पर कुरुकुल के श्रेष्ठ वीर विकर्ण ने रथ पर सवार हो विपाठ नामक बाणों की भयंकर वर्षा करते हुए भीम के छोटे भाई अतिरथी वीर अर्जुन पर आक्रमण किया। तब अर्जुन ने अपने बाणों से जाम्बूनद नामक उत्तम सुवर्ण मढ़े हुए सुदृढ़ प्रत्यन्चा वाले विकर्ण के धनुष को काटकर ध्वज के भी टुकड़े-टुकड़े करके गिरा दिया। रथ की ध्वजा कट जाने पर विकर्ण बड़े वेग से भाग निकला।[1]

शत्रुदल के वीरों का वध करने वाले कुन्तीनन्दन अर्जुन को इस प्रकार अमानुषिक पराक्रम करते देख शत्रुंतप नामक वीर उनके सामने आया। वह अर्जुन का पराक्रम न सह अपनी बाण वर्षा से पार्थ को पीड़ा देने लगा। कौरव सेना में विचरने वाले अर्जुन ने अतिरथी राजा शत्रुंतप के बाणों से घायल होकर उसे भी तुरंत पाँच बाणों से बींध डाला। फिर उसके सारथि को दस बाण मारकर यमलोक पहुँचा दिया। भरतश्रेष्ठ अर्जुन के बाण कवच छेदकर शरीर के भीतर घुस जाते थे। उनके द्वारा घायल होकर राजा शत्रुंतप के प्राण पखेरू उड़ गये और जैसे आँधी से उखड़ा हुआ वृक्ष पर्वत शिखर से गिरे, उसी प्रकार वह रथ से रणभूमि में गिर पड़ा। नरश्रेष्ठ वीरवर धनंजय के बाणों की मार खाकर कौरव सेना के कितने ही वीर घायल हो इस प्रकार काँपने लगे, जैसे समयानुसार प्रचण्ड आँधी के वेग से बड़े-बड़े जंगलों के वृक्ष हिलने लगते हैं।[2]


टीका टिप्पणी और संदर्भ

महाभारत शब्दकोश |लेखक: एस. पी. परमहंस |प्रकाशक: दिल्ली पुस्तक सदन, दिल्ली |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 104 |

  1. महाभारत विराट पर्व अध्याय 54 श्लोक 1-10
  2. महाभारत विराट पर्व अध्याय 54 श्लोक 11-19

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