अकृतव्रण

अकृतव्रण हिन्दू पौराणिक ग्रन्थ महाभारत और मान्यताओं के अनुसार परशुराम जी के प्रिय शिष्य और सखा थे।[1]

  • किसी समय बाघ के आक्रमण से धराशायी होने और उसके नीचे आने पर भी कोई चोट न लगने के कारण ही इनका नाम अकृतव्रण पड़ा था।
  • पितामह भीष्म और उनके गुरु परशुराम के मध्य हुए युद्ध में यह परशुराम के सारथी थे।
  • अकृतव्रण साये की तरह सदैव परशुराम के साथ ही रहते थे।[2]
  • भगवान परशुराम की कहानी में अकृतव्रण प्रकरण का इसलिए महत्त्व है, क्योंकि संपूर्ण परशुराम चरित में हर स्थान पर अकृतव्रण की भूमिका है, वह साये की तरह उनके साथ रहे है।[3]


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 177 श्लोक 1-22
  2. महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 180 श्लोक 1-22
  3. महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 179 श्लोक 9

महाभारत शब्दकोश |लेखक: एस. पी. परमहंस |प्रकाशक: दिल्ली पुस्तक सदन, दिल्ली |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 09 |

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