धृष्टद्युम्न

महाभारत में द्रोणाचार्य का वध करते हुए धृष्टद्युम्न

धृष्टद्युम्न पांचाल नरेश द्रुपद का पुत्र था। इसका जन्म द्रोणाचार्य का विनाश करने के लिये प्रज्त्रलित अग्निकुंड से हुआ था। महाराज द्रुपद ने द्रोणाचार्य से अपने अपमान का बदला लेने के लिये संतान-प्राप्ति के उद्देश्य से यज्ञ किया था। यज्ञ की पूर्णाहुति के समय यज्ञकुण्ड से मुकुट, कुण्डल, कवच, त्रोण तथा धनुष धारण किये हुए एक कुमार प्रकट हुआ। इसका नाम धृष्टद्युम्न रखा गया।

  • महाभारत के युद्ध में पाण्डव-पक्ष का यही कुमार सेनापति रहा।
  • ये द्रुपद का पुत्र तथा द्रौपदी का भाई था, जो यज्ञकुण्ड से उत्पन्न हुआ था।
  • इसके पुत्र का नाम धृष्टकेतु था। पाण्डवों की ओर से महाभारत में युद्ध लड़ा था। द्रोण का वध इसी ने किया था।
  • महाभारत युद्ध में धृष्टद्युम्न ने द्रुमसेन का वध किया था। द्रोण के हाथों द्रुपद अपने तीन पौत्रों तथा विराट सहित मारे गये। धृष्टद्युम्न क्रोध से थरथरा उठा और द्रोण को मारने के लिए उसने शपथ ली, किंतु द्रोण वीर योद्धाओं से इतने सुरक्षित थे कि वह उनका कुछ भी बिगाड़ न पाया।
  • भीम ने आकर धृष्टद्युम्न को युद्ध के लिए उत्साहित किया तथा दोनों वीर द्रोण की सेना में घुस गये। श्रीकृष्ण की प्रेरणा से पांडवों ने द्रोण तक यह झूठा समाचार पहुँचाया कि अश्वत्थामा मारा गया है। फलस्वरूप द्रोण ने अस्त्र शस्त्र त्याग दिये।
  • अवसर का लाभ उठाकर धृष्टद्युम्न ने द्रोण के बाल पकड़कर सिर काट डाला। वास्तव में द्रुपद ने एक वृहत यज्ञ में देवोपासना के उपरांत प्रज्वलित अग्नि से द्रोणाचार्य के वध के निमित्त ही धृष्टद्युम्न नामक राजकुमार को प्राप्त किया था तथा द्रोण ने धृष्टद्युम्न के वध के लिए अश्वत्थामा को जन्म दिया था।
  • द्रोण-वध को लेकर अर्जुन तथा सात्यकि का धृष्टद्युम्न से बहुत विवाद हो गया। भीम, सहदेव, युधिष्ठिर तथा कृष्ण ने बीच-बचाव कराया।[1]


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत, द्रोणपर्व, अध्याय 166, श्लोक 1 से 22 तक, अ0 186, अ0 193

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