मतंग रामायण कालीन एक ऋषि थे, जो शबरी के गुरु थे।[1] यह एक ब्राह्मणी के गर्भ से उत्पन्न एक नापित के पुत्र थे। ब्राह्मणी के पति ने इन्हें अपने पुत्र के समान ही पाला था।
- गर्दभी के साथ संवाद से जब इन्हें यह विदित हुआ कि मैं ब्राह्मण पुत्र नहीं हूँ, तब इन्होंने ब्राह्मणत्व प्राप्त करने के लिए घोर तप किया।
- इन्द्र के वरदान से मतंग 'छन्दोदेव' के नाम से प्रसिद्ध हुए।[2] रामायण के अनुसार ऋष्यमूक पर्वत के निकट इनका आश्रम था, जहाँ श्रीराम गए थे।[3]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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