ब्रह्मर्षि

ब्रह्मर्षि अर्थात ब्राह्मण कुलों के ऋषि, जिनके गौत्र चले और जो ब्रह्मज्ञानी थे। इनका वास ब्रह्मलोक में हुआ। ये वेद के मन्त्रदृष्टा ऋषि कहलाते थे।

  • धर्म का साक्षात्कार कराने वाले भी ऋषि कहे गये-
'ऋषय:साक्षात्कृतधर्माण।'
  • वे प्रेरणावान ओजस्विता, ऋजुता से परिपूर्ण कवि थे। उनकी पूर्व में संख्या सात थी। इससे ये 'सप्तऋषि' कहे गये। 'शतपथ ब्राह्मण' में इनके नाम आते हैं।
  • महाभारत में इनका स्थान-स्थान पर प्रचुर प्रयोग मिलता है। नामों में भी भिन्नता आ गई। 'विष्णुपुराण' ने भी कुछ नाम जोड़ दिये।
  • आकाश में सप्तऋषियों का एक तारामण्डल माना गया है, जो ध्रुव की परिक्रमा करता है।


एकल ब्रह्मर्षि निम्न प्रकार हैं-

अर्वावसु, कश्यप, दधीचि, भारद्वाज, भृगु, कृप, अष्टावक्र, गौतम, दमन, मंकणक, मार्कण्डेय, अत्रि, च्यवन, देवशर्मण, रुचीक, लिखित, शुक्र, और्व, जाजलि, नारद, लोमश, वसिष्ठ, व्यास, पुलस्त्य, विश्वामित्र, वैशम्पायन

शतपथ ब्राह्मण के सप्तऋर्षि-

गौतम, भारद्वाज, विश्वामित्र, जमदग्नि, वसिष्ठ, कश्यप और अत्रि।

महाभारत के सप्तऋर्षि-

मरीचि, अत्रि, अंगिरा, पुलह, पुलस्त्य, ऋतु और वशिष्ठ। 'वायु पुराण' इस सूची में भृगु का नाम जोड़कर इनकी संख्या आठ कर देता है।[1]


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत, आदिपर्व, अध्याय 107 आदि।

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