सत्यवान

Disamb2.jpg सत्यवान एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- सत्यवान (बहुविकल्पी)
संक्षिप्त परिचय
सत्यवान
सत्यवान और सावित्री
पिता राजा द्युमत्सेन
समय-काल पौराणिक
विवाह सावित्री
शासन-राज्य शाल्व
अन्य विवरण अल्पायु होने के कारण सत्यवान की मृत्यु हो गई, परंतु सावित्री ने अपने पातिव्रत्य धर्म के बल से यमराज को प्रसन्न करके पति को पुन: जीवित कर लिया। सत्यवान का नाम सावित्री के कारण ही प्रसिद्ध है।
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अन्य जानकारी सावित्री और सत्यवान की कथा सबसे पहले महाभारत के वनपर्व में मिलती है, जब युधिष्ठिर मार्कण्डेय ऋषि से पूछते हैं कि क्या कभी कोई और स्त्री थी, जिसने द्रौपदी जितना भक्ति प्रदर्शित की?

सत्यवान शाल्व देश के राजा द्युमत्सेन के पुत्र थे। इनकी पत्नी सावित्री के पातिव्रत्य धर्म की कथा पुराणों में प्रसिद्ध है। इनके पिता अंधे होने के कारण राजगद्दी से उतार दिये गए थे। अत: परिवार सहित राजा द्युमत्सेन वन में निवास करते थे। मद्र देश के राजा अश्वपति ने अपनी पुत्री सावित्री का विवाह सत्यवान से कर दिया था। अल्पायु होने के कारण सत्यवान की मृत्यु हो गई, परंतु सावित्री ने अपने पातिव्रत्य धर्म के बल से यमराज को प्रसन्न करके पति को पुन: जीवित कर लिया। सत्यवान का नाम अपनी पत्नी सावित्री के कारण ही प्रसिद्ध हो गया। सावित्री की तपस्या से सत्यवान की आयु चार सौ वर्ष हो गई।[1]

कथा

सावित्री का जन्म

पुराण वर्णित कथानुसार- मद्र देश के राजा का नाम अश्वपति था। उनके कोई भी सन्तान न थी, इसलिये उन्होंने सन्तान प्राप्ति के लिये सावित्री देवी की बड़ी उपासना की, जिसके फलस्वरूप उनकी एक अत्यन्त सुन्दर कन्या उत्पन्न हुई। सावित्री देवी की कृपा से उत्पन्न उस कन्या का नाम अश्वपति ने सावित्री ही रख दिया।[2]

विवाह हेतु सावित्री द्वारा सत्यवान का चुनाव

सावित्री की उम्र, रूप, गुण और लावण्य शुक्ल पक्ष के चन्द्रमा की तरह बढ़ना लगा और वह युवावस्था को प्राप्त हो गई। अब उसके पिता राजा अश्वेपति को उसके विवाह की चिन्ता होने लगी। एक दिन उन्होंने सावित्री को बुला कर कहा कि- "पुत्री! तुम अत्यन्त विदुषी हो, अतः अपने अनुरूप पति की खोज तुम स्वयं ही कर लो।" पिता की आज्ञा पाकर सावित्री एक वृद्ध तथा अत्यन्त बुद्धिमान मन्त्री को साथ लेकर पति की खोज हेतु देश-विदेश के पर्यटन के लिये निकल पड़ी। जब वह अपना पर्यटन कर वापस अपने घर लौटी तो उस समय सावित्री के पिता देवर्षि नारद के साथ भगवत्चर्चा कर रहे थे। सावित्री ने दोनों को प्रणाम किया और कहा कि- "हे पिता! आपकी आज्ञानुसार मैं पति का चुनाव करने के लिये अनेक देशों का पर्यटन कर वापस लौटी हूँ। शाल्व देश में द्युमत्सेन नाम से विख्यात एक बड़े ही धर्मात्मा राजा थे। किन्तु बाद में दैववश वे अन्धे हो गये। जब वे अन्धे हुये, उस समय उनके पुत्र की बाल्यावस्था थी। द्युमत्सेन के अनधत्व तथा उनके पुत्र के बाल्यपन का लाभ उठा कर उसके पड़ोसी राजा ने उनका राज्य छीन लिया। तब से वे अपनी पत्नी एवं पुत्र सत्यवान के साथ वन में चले आये और कठोर व्रतों का पालन करने लगे। उनके पुत्र सत्यवान अब युवा हो गये हैं, वे सर्वथा मेरे योग्य हैं, इसलिये उन्हीं को मैंने पतिरूप में चुना है।"

सत्यवान-सावित्री का विवाह

सावित्री की बातें सुनकर देवर्षि नारद बोले कि- "हे राजन! पति के रूप में सत्यवान का चुनाव करके सावित्री ने बड़ी भूल की है।" नारद जी के वचनों को सुनकर अश्ववपति चिन्तित होकर बोले- "हे देवर्षि! सत्यवान में ऐसे कौन से अवगुण हैं जो आप ऐसा कह रहे हैं?" इस पर नारद जी ने कहा कि- "राजन! सत्यवान तो वास्तव में सत्य का ही रूप है और समस्त गुणों का स्वामी है। किन्तु वह अल्पायु है और उसकी आयु केवल एक वर्ष ही शेष रह गई है। उसके बाद वह मृत्यु को प्राप्त हो जायेगा।" नारद की बातें सुनकर राजा अश्वपति ने सावित्री से कहा कि- "पुत्री! तुम नारद जी के वचनों को सत्य मान कर किसी दूसरे उत्तम गुणों वाले पुरुष को अपने पति के रूप में चुन लो।" इस पर सावित्री बोली कि- "हे तात! भारतीय नारी अपने जीवनकाल में केवल एक ही बार पति का वरण करती है। अब चाहे जो भी हो, मैं किसी दूसरे को अपने पति के रूप में स्वीकार नहीं कर सकती।" सावित्री की द‍ृढ़ता को देखकर देवर्षि नारद अत्यन्त प्रसन्न हुये और उनकी सलाह के अनुसार राजा अश्वपति ने सावित्री का विवाह सत्यवान के साथ कर दिया।[2]



टीका टिप्पणी और संदर्भ

महाभारत शब्दकोश |लेखक: एस. पी. परमहंस |प्रकाशक: दिल्ली पुस्तक सदन, दिल्ली |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 112 |

  1. पौराणिक कोश |लेखक: राणा प्रसाद शर्मा |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 510 |
  2. 2.0 2.1 सती सावित्री की कथा (हिंदी) blogs.oyepages.com। अभिगमन तिथि: 22 फरवरी, 2017।

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