जगन्नाथ मंदिर पुरी

जगन्नाथ मंदिर पुरी
जगन्नाथ मंदिर, पुरी
वर्णन उड़ीसा राज्य के पुरी शहर में जगन्नाथ मंदिर स्थित है। यह मंदिर भगवान जगन्नाथ (श्रीकृष्ण) को समर्पित है।
स्थान पुरी
देवी-देवता श्रीकृष्ण, बलराम व उनकी बहन सुभद्रा
भौगोलिक स्थिति उत्तर- 19° 48' 17.00", पूर्व- 85° 49' 6.00"
मानचित्र लिंक गूगल मानचित्र
अन्य जानकारी पौराणिक कथा के अनुसार, इन मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा राजा इन्द्रद्युम्न ने मंत्रोच्चारण व विधि - विधान से की थी।

उड़ीसा राज्य के तटवर्ती शहर पुरी में जगन्नाथ मंदिर स्थित है। यह मंदिर भगवान जगन्नाथ (श्रीकृष्ण) को समर्पित है। जगन्नाथ मंदिर एक हिन्दू मंदिर है। 'जगन्नाथ' शब्द का अर्थ "जगत के स्वामी" होता है। इनकी नगरी ही जगन्नाथ पुरी या पुरी कहलाती है।

प्रतिमाएँ

रथयात्रा के समय भक्तों को प्रतिमाओं तक पहुँचने का अवसर मिलता है। पुरी का जगन्नाथ मंदिर भक्तों की आस्था केंद्र है, जहाँ पूरे वर्ष भक्तों का मेला लगा रहता है। पुरी का जगन्नाथ मंदिर उच्चस्तरीय नक़्क़ाशी और भव्यता लिए प्रसिद्ध है। रथोत्सव के समय इसकी छटा निराली होती है। पुरी के महान मन्दिर में तीन मूर्तियाँ हैं-

  1. भगवान जगन्नाथ की मूर्ति
  2. बलभद्र की मूर्ति
  3. सुभद्रा की मूर्ति

ये सभी मूर्तियाँ काष्ठ की बनी हुई हैं। पुरी की ये तीनों प्रतिमाएँ भारत के सभी देवी-देवताओं की तरह नहीं होतीं। यह मूर्तियाँ आदिवासी मुखाकृति के साथ अधिक साम्यता रखती हैं। पुरी का मुख्य मंदिर बारहवीं सदी में राजा अनंतवर्मन के शासनकाल के समय बनाया गया। उसके बाद जगन्नाथ जी के 120 मंदिर बनाए गए हैं।

पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, इन मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा राजा इन्द्रद्युम्न ने मंत्रोच्चारण व विधि-विधान से की थी। महाराज इन्द्रद्युम्न मालवा की राजधानी अवन्ति से अपना राज–पाट चलाते थे। भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा प्रत्येक वर्ष आषाढ़ मास में शुक्ल द्वितीया को होती है। यह एक विस्तृत समारोह है। जिसमें भारत के विभिन्न भागों से आए लोग सहभागी होते हैं। दस दिन तक यह पर्व मनाया जाता है। इस यात्रा को 'गुण्डीय यात्रा' भी कहा जाता है। गुण्डीच का मन्दिर भी है।

मंदिर की विशालता

जगन्नाथ के विशाल मंदिर के भीतर चार खण्‍ड हैं - 'प्रथम भोग मंदिर', जिसमें भगवान को भोग लगाया जाता है। 'द्वितीय रंग मंदिर', जिसमें नृत्‍य-गान आदि होते हैं। 'तृतीय सभामण्‍डप', जिसमें दर्शकगण (तीर्थ यात्री) बैठते हैं। चौथा अंतराल है। जगन्‍नाथ के मंदिर का गुंबद 192 फुट ऊंचा और चवक्र तथा ध्‍वज से आच्‍छन्‍न है। मंदिर समुद्र तट से 7 फर्लांग दूर है। यह सतह से 20 फुट ऊंची एक छोटी सी पहाड़ी पर स्‍थित है। पहाड़ी गोलाकार है, जिसे 'नीलगिरि' कहकर सम्‍मानित किया जाता है। अन्‍तराल के प्रत्‍येक तरफ़ एक बड़ा द्वार है, उनमें पूर्व का द्वार सबसे बड़ा और भव्‍य है। प्रवेश द्वार पर एक 'बृहत्‍काय सिंह' है, इसीलिए इस द्वार को 'सिंह द्वार' भी कहा जाता है। यह मंदिर 20 फीट ऊंची दीवार के परकोटे के भीतर है, जिसमें अनेक छोटे-छोटे मंदिर है। मुख्य मंदिर के अलावा एक परंपरागत डयोढ़ी, पवित्र देवस्थान या गर्भगृह, प्रार्थना करने का हॉल और स्तंभों वाला एक नृत्य हॉल है। सदियों से पुरी को अनेक नामों से जाना जाता है, जैसे- नीलगिरि, नीलाद्री, नीलाचंल, पुरुषोत्तम, शंखक्षेत्र, श्रीक्षेत्र, जगन्नाथ धाम और जगन्नाथ पुरी। यहाँ पर बारह महत्त्वपूर्ण त्यौहार मनाये जाते हैं, लेकिन इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण त्यौहार जिसने अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की है, वह रथयात्रा ही है।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

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