श्रीकृष्णभावनामृत संघ

  1. श्रीकृष्ण विज्ञान की निरन्तर धारणा करते हुए हम सांसारिक चिन्ताओं से मुक्त हो सकते हैं और अपना वर्तमान एवं भविष्य जीवन उज्ज्वल, पवित्र एवं आनन्दपूर्व बना सकते हैं।
  2. हम शरीर नहीं हैं अपितु अविनाशी आत्मा हैं तथा साक्षात् भगवान श्रीकृष्ण के संश हैं। इस प्रकार हम सम्स्त विश्ववासी परस्पर भाई-भाई हैं और भगवान श्रीकृष्ण ही हमारे एकमात्र माता-पिता हैं।
  3. भगवान श्रीकृष्ण का व्यक्तित्व नित्य, सर्वज्ञ, सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान एवं सवकिर्षक है। वे समस्त जीवों एवं ब्रह्माण्डों के एकमात्र पालनकर्त्ता हैं।
  4. संसार के समस्त धर्मों में परम सत्य का सूत्र सन्निहित है परन्तु सबसे अधिक प्राचीन एवं विश्वसनीय एवं प्रासादिक एवं त्रिकाल-सत्य वैदिक-वाड़्मय है एवं भगवद्गीत उनमें प्रधान है। क्योंकि यह स्वयं भगवान श्रीकृष्ण के मुखारविन्द से निकली वाणी है, अतः यह समस्त वैदिक शास्त्रों का निष्कर्ष है।
  5. हमको वैदिक ज्ञान की प्राप्ति किसी धर्म गुरुसे ही करनी चाहिए जो निस्वार्थी एवं श्रीकृष्ण का अनन्य भक्त हो।
  6. भोजन के पूर्व हमें अपना भोजन भगवान श्रीकृष्ण को अर्पण कर प्रसाद रूप में ग्रहण करना चाहिए, ताकि भगवान स्वयं उसके दाता बनकर हमें, हमारी इन्द्रियों एवं बुद्धि को पवित्र बना दें।
  7. हमें अपने जीवन में कृष्णार्थ अख्प्ल चेष्टा करनी चाहिए तथा कोई भी कार्य केवल अपनी इन्द्रिय तृप्ति के लिए नहीं करना चाहिए।
  8. इस घोर कलिकाल में भगवत्प्रेम की पूर्ण स्थिति प्राप्त करने के लिए सबसे सुगम एवं अमोघ उपाय, भगवन्नाम कीर्तन है जो एक ही साथ साधन एवं सिद्धि दोनों है।
भक्त योजना-

हरेकृष्ण संस्था में पूरा जीवन देकर पूर्ण समय के लिए भक्त बनते हैं। किसी भी जाती, देश, रंग के भेदभाव बिना हर व्यक्ति इस योजना में आमन्त्रित हैं।

नियम
  1. मांसाहार निवेध (माँस मछली, अंडा, लहसुन, प्याज आदि)
  2. नशा निवेध (चाय, काँफी, बीड़ी, शराब)
  3. अवैध यौन सम्बन्ध निषेध्।
  4. जुआ निषेध।

उपयुक्त नियमों का पालन करके हर व्यक्ति हरे कृष्ण संस्था में भक्त बनकर निःशुल्क रह सकता है। भक्त लोग प्रातः 3 बजे उठ जाते हैं और प्रातः 4 बजे से 7 बजे तक आरती, जप, भागवत पाठ इत्यादि सत्संग कार्यक्रमों में शामिल होते हैं। भक्तों को हरे कृष्ण महामन्त्र (हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे) की 108 मनके वाली 16 मालाऐं जप करनी पड़ती है।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

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