रासमण्डल


संक्षिप्त परिचय
रासमण्डल
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विवरण रासमण्डल उस स्थान को कहा जाता है, जहाँ रासलीलाओं का आयोजन किया जाता है। ब्रजमण्डल में श्रीकृष्ण ने जिन स्थानों पर रासलीलाएँ की वे स्थान रासस्थाली कहलाते हैं।
दृश्य चन्दन, कस्तूरी , अगर और कुमकुम से रासमण्डल को सजाकर उस पर दही, लावा, सफेद धान और दूर्वादल बिखेरे जाते थे, जिससे उसका दृश्य बहुत ही सुंदर व अनुपम लगता था।
संबंधित लेख रासलीला, कृष्णलीला, कृष्ण, कृष्ण और गोपियाँ, राधा, वृन्दावन, ब्रज आदि।
अन्य जानकारी जावट ग्राम में स्थित रासमण्डल में सखियों के साथ राधिका जी ने सप्तवर्षीय कृष्ण के साथ अत्यन्त विह्वल होकर रासादि लीलाएँ की थीं।
अद्यतन‎

रासमण्डल उस स्थान को कहा जाता है, जहाँ रासलीलाओं का आयोजन किया जाता है।

  • ब्रह्मवैवर्त पुराण में सौति जी ने बताया है कि गोलोक में सर्वव्यापी महान परमात्मा गोलोकनाथ ने इन नारायण आदि की सृष्टि की। इन सबकी सृष्टि करके इन्हें साथ ले भगवान श्रीकृष्ण अत्यन्त कमनीय सुरम्य रासमण्डल में गये। रमणीय कल्पवृक्षों के मध्य भाग में मण्डलाकार रासमण्डल अत्यन्त मनोहर दिखायी देता था। वह सुविस्तृत, सुन्दर, समतल और चिकना था। चन्दन, कस्तूरी , अगर और कुमकुम से उसको सजाया गया था। उस पर दही, लावा, सफेद धान और दूर्वादल बिखेरे गये थे। रेशमी सूत में गुँथे हुए नूतन चन्दन-पल्लवों की बन्दनवारों और केले के खंभों द्वारा वह चारों ओर से घिरा हुआ था। करोड़ों मण्डप, जिनका निर्माण उत्तम रत्नों के सारभाग से हुआ था, उस भूमि की शोभा बढ़ाते थे। उनके भीतर रत्नमय प्रदीप जल रहे थे। वे पुष्प और सुगन्ध की धूप से वासित थे। उनके भीतर अत्यन्त ललित प्रसाधन-सामग्री रखी हुईं थीं। वहाँ जाकर जगदीश्वर श्रीकृष्ण सबके साथ उन मण्डपों में ठहरे।[1]
  • जावट ग्राम में स्थित रासमण्डल में सखियों के साथ राधिका जी ने सप्तवर्षीय कृष्ण के साथ अत्यन्त विह्वल होकर रासादि लीलाएँ की थी।[2]


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ब्रह्मवैवर्त पुराण |प्रकाशक: गोविन्द भवन कार्यालय, गीताप्रेस गोरखपुर |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 34 |
  2. जावट ग्राम नन्दगाँव

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