चतुर्थ (4) अध्याय: शल्य पर्व (ह्रदप्रवेश पर्व)
महाभारत: शल्य पर्व: चतुर्थ अध्याय: श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद
अनघ! पितामह भीष्म, आचार्य द्रोण, महारथी कर्ण, जयद्रथ, तथा तुम्हारे सभी भाई मारे जा चुके हैं। तुम्हारा पुत्र लक्ष्मण भी जीवित नहीं है। अब दूसरा कौन बच गया है, जिसका हम लोग आश्रय ग्रहण करें। जिन पर युद्ध का भार रखकर हम राज्य पाने की आशा करते थे, वे शूरवीर तो शरीर छोड़कर ब्रह्मवेत्ताओं की गति को प्राप्त हो गये। इस समय हम लोग यहाँ भीष्म आदि गुणवान महारथियों के सहयोग से वंचित हो गये हैं और बहुत-से नरेशों को मरवाकर दयनीय स्थिति में आ गये हैं। जब सब लोग जीवित थे, तब भी अर्जुन किसी के द्वारा पराजित नहीं हुए। श्रीकृष्ण- जैसे नेता के रहते हुए महाबाहु अर्जुन देवताओं के लिये भी दुर्जय हैं। उनका वानरध्वज इन्द्रधनुष के तुल्य बहुरंगा और इन्द्रध्वज के समान अत्यन्त ऊँचा है। उसके पास पहुँचकर हमारी विशाल सेना भय से विचलित हो उठती है। भीमसेन के सिंहनाद, पांचजन्य शंख की ध्वनि और गाण्डीव धनुष की टंकार से हमारा दिल दहल उठता है। जैसे चमकती हुई महाविद्युत नेत्रों की प्रभा को छीनती-सी दिखायी देती है तथा जैसे अलातचक्र घूमता देखा जाता है, उसी प्रकार अर्जुन के हाथ में गाण्डीव धनुष भी दृष्टिगोचर होता है। अर्जुन के हाथ में डोलता हुआ उनका सुवर्णजटित महान धनुष सम्पूर्ण दिशाओं में वैसा ही दिखायी देता है, जैसे मेघों की घटा में बिजली। उनके रथ में जुते हुए घोडे़ श्वेत वर्ण वाले, वेगशाली तथा चन्द्रमा और कास के समान उज्ज्वल कांति से सुशोभित हैं। वे ऐसी तीव्र गति से चलते हैं, मानों आकाश को पी जायँगे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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