महाभारत सभा पर्व अध्याय 24 श्लोक 1-9

चतुर्विंश (24) अध्‍याय: सभा पर्व (जरासंधवध पर्व)

Prev.png

महाभारत: सभा पर्व: चतुर्विंश अध्याय: श्लोक 1-9 का हिन्दी अनुवाद


भीम के द्वारा जरासंध का वध, बंदी राजाओं की मुक्ति, श्रीकृष्ण आदि का भेंट लेकर इन्द्रप्रस्थ में आना और वहाँ से श्रीकृष्ण का द्वारका जाना

वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! तदनन्तर भीमसेन ने विशाल बुद्धि का सहारा ले जरासंध के वध की इच्छा से यदुनन्दन श्रीकृष्ण को सम्बोधित करके कहा- ‘यदुश्रेष्ठ श्रीकृष्ण! जरासंध ने लंगोट से अपनी कमर खूब कस ली है। यह पाली प्राण रहते मेरे वश में आने वाला नहीं जाना पड़ता’। उनके ऐसा कहने पर पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण ने जरासंध के वध के लिये भमसेन को उत्तेजित करते हुए कहा- ‘भीम! तुम्हारा जो सर्वोत्कृष्ट देवी स्वरूप है और तुम्हें वायुदेवता से जो दिव्य बल प्राप्त हुआ है, उसे आज हमारे सामने जरासंध पर शीघ्रतापर्वूक दिखाओ। यह खोटी बुद्धि वाला महारथी जरासंध तुम्हारे हाथों से ही मारा जा सकता है। यह बात आकाश में मुझे उसे समय सुनायी पड़ी थी जबकि बलराम जी के द्वारा जरासंध के प्राण लेने की चेष्टा की जा रही थी। इसीलिये गिरिश्रेष्ठ गोमन्त पर भैया बलराम ने इसे जीवित छोड़ दिया था, अन्यथा बलदेव जी के काबू में आ जाने पर इस जरासंध के सिवा दूसरा कौन जीवित बच सकता था? महाबली भीम! तुम्हारे सिवा और किसी के द्वारा इसकी मृत्यु नहीं होने वाली है। महाबाहो! तुम वायुदेव का चिन्तन करके इस मगधराज को मार डालो।' उनके इस तरह संकेत करने पर शत्रुओं का दमन करने वाले महाबली भीम ने उस समय बलवान् जरासंध को उठाकर आकाश में वेग से घुमाना आरम्भ किया। तब भगवान् श्रीकृष्ण ने जरासंध का वध कराने की इच्छा से भीमसेन की ओर देखकर एक नरकट[1] हाथ में लिया और उसे (दातुन की भाँति) दो टुकड़ों में चीर डाला (तथा उसे फेंक दिया)। यह जरासंध को मारने के लिये एक संकेत था।

भरतश्रेष्ठ जनमेजय! (भीम ने उनके संकेत को समझ लिया और) उन्होंने सौ बार घुमाकर उसे धरती पर पटक दिया और उसकी पीठ को धनुष की तरह मोड़कर दोनों घुटनों की चोट से उसकी रीढ़ तोड़ डाली, फिर अपने शरीर की रगड़ से पीसते हुए भीम ने बड़े जोर से सिंहनाद किया। इसके बाद अपने एक हाथ से उसका एक पैर पकड़कर और दूसरे पैर पर अपना पैर रखकर महाबली भीम ने उसे दो खण्डों में चीर डाला। तब वे दोनों टुकड़े फिर से जुड़ गये और प्रतापी जरासंध भीम से भिड़कर बाहुयुद्ध करने लगा। उन दोनों वीरों का वह युद्ध अत्यन्त भयंकर ओर रोमांचकारी था। उसे देखकर ऐसा जान पड़ता था मानो सम्पूर्ण जगत का संहार हो जायगा। वह इन्द्रयुद्ध सम्पूर्ण प्राणियों के भय को बढ़ाने वाला था। उसे समय भगवान श्रीकृष्ण ने पुन: एक नरकट लेकर पहले की ही भाँति चीरकर उसके दो टुकड़े कर दिये और उन दोनों टुकड़ों को अलग-अलग विपरीत दिशा में फेंक दिया। जरासंध के वध के लिये यह दूसरा संकेत था।

भीमसेन ने उसे समझकर पुन: मगधराज को दो टुकड़ों में चीर डाला और पैर से ही उन दोनों टुकड़ों को विपरीत दिशाओं में करके फेंक दिया। इसके बाद वे विकट गर्जना करने लगे। राजन्! उस समय जरासंध का शरीर शवरूप होकर मांस के लोंदे सा जान पड़ने लगा। उसके शरीर के मांस, हड्डियाँ, मेदा और चमड़ा सभी सूख गये थे। मस्तिष्क और शरीर दो भागों में विदीर्ण हो गये थे। जब जरासंध रगड़ा जा रहा था और पाण्डुकुमार गर्ज गर्ज कर उसे पीसे डालते थे, उस समय भीमसेन की गर्जना और जरासंध की चीत्कार से जो तुमुल नाद प्रकट हुआ, वह समस्त प्राणियों को भयभीत करने वाला था। उसे सुनकर सभी मगधनिवासी भय से थर्रा उठे। स्त्रियों के तो गर्भ तक गिर गये।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. नरकट बेंत की तरह पोले डंठल का एक पौधा होता है, जो कलम बनाने के काम आता है।

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः