महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 103 श्लोक 1-19

त्रयधिकशततम (103) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)

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महाभारत: द्रोण पर्व: त्रयधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-19 का हिन्दी अनुवाद

संजय कहते हैं-राजन! अर्जुन से ऐसा कहकर राजा दुर्योधन ने तीन अत्‍यन्‍त वेगशाली मर्म भेदी बाणों द्वारा उन्‍हें बींध डाला और चार बाणों द्वारा उनके चारो घोड़ों को भी घायल कर दिया। इस प्रकार दस बाण मारकर उसने श्रीकृष्‍ण की भी छाती छेद डाली और एक भल्‍ल से उनके चाबुक को काटकर पृथ्‍वी पर गिरा दिया।

तब व्‍यग्रता रहित अर्जुन ने सान पर चढ़ाकर तेज किये हुए विचित्र पंखवाले उनके वे बाण दुर्योधन के कवच पर जाकर फिसल गये। उन्‍हें निष्‍फल हुआ देख अर्जुन ने पुन: चौदह तीखे बाण चलाये; परंतु वे भी कवच से फिसल गये। अर्जुन चलाये हुए उन अट्ठाईस बाणों को निष्‍फल हुआ देख शत्रुवीरों का संहार करने वाले श्रीकृष्‍ण ने उनसे इस प्रकार कहा। ‘पार्थ! आज तो मैं प्रस्‍तर खण्‍डों के चलने के समान ऐसी बात देख रहा हूं, जिसे पहले कभी नहीं देखा था। तुम्‍हारे चलाये हुए बाण तो कोई काम नहीं कर रहे हैं। ‘भरत श्रेष्‍ठ! तुम्‍हारे गाण्‍डीव-धनुष की शक्ति पहले जैसी ही है न; तुम्‍हारी मुटठी एवं बाहुबल भी पूर्ववत हैं न। ‘आज तुम्‍हारी और तुम्‍हारे इस शत्रु की अन्तिम भेंट का समय नहीं आया है क्‍या मैं जो पूछता हूं, उसका उत्‍तर दो। ‘कुन्‍तीनन्‍दन! आज युद्ध स्‍थल में दुर्योधन के रथ के पास निष्‍फल होकर गिरे हुए तुम्‍हारे इन बाणों को देखकर मुझे महान आश्रचर्य हो रहा है। ‘पार्थ! वज्र और अशनि के समान भयंकर तथा शत्रुओं के शरीर को विदीर्ण कर देने वाले तुम्‍हारे वे बाण आज कुछ काम नहीं कर रहे हैं, यह कैसी विडम्‍बना है।

अर्जुन बोले – श्रीकृष्‍ण! मेरा तो यह विश्‍वास है कि दुर्योधन को द्रोणाचार्य ने अमेद्य कवच बांधकर उसमें यह अद्भुत शक्ति स्‍थापित कर दी है। यह कवच धारण मेरे अस्त्रों के लिये अमेद्य है। श्रीकृष्‍ण! इस कवच के भीतर तीनों लोकों की शक्ति संनिहित है। एकमात्र आचार्य द्रोण ही इस विद्या को जानते हैं और उन्‍हीं सदुरु से सीखकर मैं भी इसे जान पाया हूँ। इस कवच को किसी प्रकार बाणों द्वारा विदीर्ण नहीं किया जा सकता। गोविन्‍द! युद्ध स्‍थल में साक्षात्‌ देवराज इन्‍द्र अपने वज्र से भी इसका विदारण नहीं कर सकते।

श्रीकृष्‍ण! आप यह सब कुछ जानते हुए भी मुझे मोह में कैसे डाल रहे हैं; केशव! तीनों लोकों में जो बात हो चुकी है, जो हो रही है तथा जो कुछ आगे होने वाली है, वह सब आपको विदित है। मधुसूदन! इसे आप जैसा जानते हैं, वैसा दूसरा कोई नहीं जानता है। श्रीकृष्‍ण! द्रोणाचार्य द्वारा विधि पूर्वक धारण करायी हुई इस कवच धारणा को ग्रहण करके यह दुर्योधन युद्धस्‍थल में निर्भय-सा खड़ा है। माधव! इसे धारण करने पर जिस कर्तव्‍य के पालन का विधान किया गया है, उसे यह नहीं जानता है। जैसे स्त्रियां गहने पहन लेती हैं, उसी प्रकार यह दूसरे के द्वारा दी हुई इस कवच धारणा को अपनाये हुए है। जनार्दन! अब आप मेरी भुजाओं और धनुष का बल देखिये। मैं कवच से सुरक्षित होने पर भी दुर्योधन को पराजित कर दूंगा। देवेश्रवर! ब्रह्मा जी ने तेजस्‍वी कवच अ‍गिंरा को दिया था। उनसे बृहस्‍पति जी ने प्राप्‍त किया था। बृहस्‍पति जी से वह इन्‍द्र को मिला।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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