महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 107 श्लोक 1-21

सप्ताधिकशततम (107) अध्याय: अनुशासनपर्व (दानधर्म पर्व)

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महाभारत: अनुशासन पर्व: सप्ताधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-21 का हिन्दी अनुवाद


दरिद्रों के लिये यज्ञतुल्य फल देने वाले उपवास व्रत और उसके फल का विस्तारपूर्वक वर्णन

युधिष्ठिर ने कहा- महात्मा पितामह ने विधिपूर्वक यज्ञों का वर्णन किया और इहलोक तथा परलोक में जो उनके संपूर्ण गुण हैं, उनका भी यथावत रूप से प्रतिपादन किया। किंतु पितामह! दरिद्र मनुष्य उन यज्ञों का लाभ नहीं उठा सकता; क्योंकि उन यज्ञों के उपकरण बहुत हैं और अनेक प्रकार के आयोजनों के कारण उनका विस्तार बहुत बढ़ जाता है। दादाजी! राजा अथवा राजपुत्र ही उन यज्ञों का लाभ ले सकते हैं। जिनके पास धन की कमी है, जो गुणहीन, एकाकी और असहाय हैं, वे उस प्रकार के यज्ञ नहीं कर सकते। इसलिये जिस कर्म का अनुष्ठान दरिद्रों, गुणहीनों, एकाकी और असहायों के लिये भी सुगम तथा बड़े-बड़े यज्ञों के समान फल देने वाला हो, उसी का मुझसे वर्णन कीजिये।

भीष्म जी ने कहा- युधिष्ठिर! अंगिरा मुनि की बतलायी हुई जो उपवास की विधि है, वह यज्ञों के समान ही फल देने वाली है। उसका पुनः वर्णन करता हूँ, सुनो। जो सबेरे और शाम को ही भोजन करता है, बीच में जल तक नहीं पीता तथा अहिंसापरायण होकर नित्य अग्निहोत्र करता है, उसे छः वर्षों में ही सिद्धि प्राप्त हो जाती है- इसमें संशय नहीं है। वह मनुष्य तपाये हुए सुवर्ण के समान कांतिमान विमान पाता है और अग्नि तुल्य तेजस्वी प्रजापति लोक में नृत्य तथा गीतों से गूंजते हुए देवांगनाओं के महल में एक पद्म वर्षों तक निवास करता है।

जो अपनी ही धर्मपत्नी में अनुराग रखते हुए तीन वर्षों तक प्रतिदिन एक समय भोजन करके रहता है, उसे अग्निष्टोम यज्ञ का फल प्राप्त होता है। जो बहुत-सी सुवर्ण की दक्षिणा से युक्त इन्द्रप्रिय यज्ञ का अनुष्ठान करता है तथा सत्यवादी, दानशील, ब्राह्मण भक्त, अदोषदर्शी, क्षमाशील, जितेन्द्रिय और क्रोधविजयी होता है, वह उत्तम गति को प्राप्त होता है। वह सफेद बादलों के समान चमकीले हंसोपलक्षित विमान पर वैठकर दो पद्म वर्षों तक समय समाप्त होने तक अप्सराओं के साथ वहाँ निवास करता है। जो मनुष्य नित्य अग्नि में होम करता हुआ एक वर्ष तक प्रति दूसरे दिन एक बार भोजन करता है तथा प्रतिदिन अग्नि की उपासना में तत्पर रहकर नित्य सबेरे जागता है, वह अग्निष्टोम व्रत का फल पाता है। वह मानव हंस और सारसों से जुते हुए विमान को पाता है और इन्द्रलोक में सुन्दरी स्त्रियों से घिरा हुआ निवास करता है।

जो बारह महीनों तक प्रति तीसरे दिन एक समय भोजन करता है, नित्य सबेरे उठता और अग्नि की परिचर्या में तत्पर हो नित्य अग्नि में आहुति देता है, वह अतिरात्र याग का उत्तम फल पाता है। उसे मोरों से जुता हुआ विमान प्राप्त होता है और वह सदा सप्तर्षियों के लोक में अप्सराओं के साथ निवास करता है। वहाँ तीन पद्म वर्षों तक वह निवास करता है। जो प्रतिदिन अग्निहोत्र करता हुआ बारह महीनों तक प्रति चौथे दिन एक बार भोजन करता है, वह भाजपेय यज्ञ का परम उत्तम फल पाता है। उस मनुष्य को देवकन्याओं से आरूढ़ विमान उपलब्ध होता है और वह पूर्वसागर के तट पर इन्द्रलोक में निवास करता है तथा वहाँ रहकर वह प्रतिदिन देवराज की क्रीड़ाओं को देखा करता है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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