महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 113 श्लोक 1-14

त्रयोदशाधिकशततम (113) अध्याय: शान्ति पर्व (राजधर्मानुशासन पर्व)

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महाभारत: शान्ति पर्व: त्रयोदशाधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-14 का हिन्दी अनुवाद


शक्तिशाली शत्रु के सामने बेंत की भाँति नतमस्‍तक होने का उपदेश-सरिताओं और समुन्‍द्र का संवाद


युधिष्ठिर ने पूछा- भरतश्रेष्ठ! राजा एक दुर्लभ राज्‍य को पाकर भी सेना और खजाना आदि साधनों से रहित हो तो सभी दृष्टियों से अत्‍यन्‍त बढ़े-चढ़े हुए शत्रु के सामने कैसे टिक सकता है? भीष्‍म जी ने कहा- भारत! इस विषय में विज्ञ पुरुष सरिताओं तथा समुन्‍द्र के संवादरुप एक प्राचीन उपाख्‍यान का दृष्‍टान्‍त दिया करते हैं।

एक समय की बात है, दैत्‍यों के निवास स्‍थान और सरिताओं के स्‍वामी समुद्र ने सम्‍पूर्ण नदियों से अपने मन का संदेह पूछा। समुद्र ने कहा- नदियों! मैं देखता हूँ कि जब बाढ़ आने के कारण तुम लोग लबालब भर जाती हो, तब विशालकाय वृक्षों को जड़-मूल और शाखाओं सहित उखाड़कर अपने प्रवाह में बहा लाती हो; परंतु उनमें बेंत का कोई पेड़ नहीं दिखायी देता। बेंत का शरीर तो नहीं के बराबर पतला है। उसमें कुछ दम नहीं होता है और वह तुम्‍हारे खास किनारे पर जमता है; फिर तुम उसे न ला सकी, क्‍या कारण है? क्‍या तुम अवहेलनावश उसे कभी नहीं लायीं अथवा उसने तुम्‍हारा कोई उपकार किया है? इस विषय में तुम सब लोगों का विचार मैं सुनना चाहता हूं, क्‍या कारण है कि बेंत का वृक्ष तुम्‍हारे इन तटों को छोड़कर नहीं आता है? इस प्रकार प्रश्‍न होने पर गंगा नदी ने सरिताओं के स्‍वामी समुन्‍द्र से यह उत्‍तम अर्पूर्ण, युक्तियुक्‍त तथा मन को ग्रहण करने वाली बात कही।

गंगा नदी बोलीं- नदीश्‍वर! ये वृक्ष अपने-अपने स्‍थान पर अकड़कर खड़े रहते हैं, हमारे प्रवाह के सामने मस्‍तक नहीं झुकाते। इस प्रतिकूल बर्ताव के कारण ही उन्‍हें नष्ट होकर अपना स्‍थान छोड़ना पड़ता है; परंतु बेंत ऐसा नहीं है। बेंत नदी के वेग को आते देख झुक जाता है, पर दूसरे वृक्ष ऐसा नहीं करते; अत: सरिताओं का वेग शान्‍त होने पर पुन: अपने स्‍थान में ही स्थित हो जाता है। बेंत समय को पहचानता है, उसके अनुसार बर्ताव करना जानता है, सदा हमारे वश में रहता है, कभी उद्दण्‍डता नहीं दिखाता और अनुकूल बना रहता है। उसमें कभी अकड़ नहीं आती; इसीलिये उसे स्‍थान छोड़कर यहाँ नहीं आना पड़ता है। जो पौधे, वृक्ष या लता-गुल्‍म हवा और पानी के वेग से झुक जाते तथा वेग शान्‍त होने पर सिर उठाते हैं, उनका कभी पराभव नहीं होता।

भीष्‍म जी कहते हैं- युधिष्ठिर! इसी प्रकार जो राजा बल में बढ़े-चढ़े तथा बन्‍धन में डालने और विनाश करने में समर्थ शत्रु के प्रथम वेग को सिर झुकाकर नहीं सह लेता है, वह शीघ्र ही नष्ट हो जाता। जो बुद्धिमान राजा अपने तथा शत्रु के सार-असार, बल तथा पराक्रम को जानकर उसके अनुसार बर्ताव करता है, उसकी कभी पराजय नहीं होती है। इस प्रकार विद्वान राजा जब शत्रु के बल को अपने से अधिक समझे, तब बेंत का ही ढंग अपना ले; अर्थात उसके सामने नतमस्‍तक हो जाय। यही बुद्धिमानी का लक्षण है।

इस प्रकार श्रीमहाभारत शान्तिपर्व के अन्‍तगर्त राजधर्मानुशासन पर्व में सरिताओं और समुन्‍द्र का संवाद विषयक एक सौ तेरहवां अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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