महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 197 श्लोक 1-13

सप्‍तनवत्‍यधिकशततम (197) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)

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महाभारत: शान्ति पर्व: सप्‍तनवत्‍यधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-13 का हिन्दी अनुवाद

जापक में दोष आने के कारण उसे नर‍क की प्राप्ति

युधिष्ठिर ने पूछा- पितामह! आपने यहाँ जापकों के लिये गतियों में उत्तम गति की प्राप्ति बतायी है। क्‍या उनके लिये एकमात्र यही गति है? या वे किसी दूसरी गति को भी प्राप्‍त होते हैं? भीष्‍मजी ने कहा- राजन्! तुम सावधान होकर जापकों की गति का वर्णन सुनो। प्रभो! पुरुषप्रवर! अब मैं यह बता रहा हूँ कि वे किस तरह नाना प्रकार के नरकों में पडते हैं[1]। जो जापक जैसा पहले बताया गया है, उसी तरह नियमों का ठीक–ठीक पालन नहीं करता, एक देश का ही अनुष्‍ठान करता है अर्थात् किसी एक का ही नियम का पालन करता है, वह नरक में पड़ता है। जो अवहेलनापूर्वक जप करता है, उसके प्रति प्रेम या प्रसन्नता नहीं प्रकट करता है, ऐसा जापक भी नि:संदेह नरक में ही पड़ता है। जप के कारण अपने में बड़प्पन का अभिमान करने वाले सभी जापक नरकगामी होते हैं। दूसरों का अपमान करने वाला जापक भी नरक में ही पड़ता है।

जो मोहित हो फल की इच्छा रखकर जप करता है, वह जिस फल का चिन्तन करता है, उसी के उपयुक्‍त नरक में पड़ता है। यदि जप करने वाले साधक को अणिमा आदि ऐश्‍वर्य प्राप्‍त हों और वह उनमें अनुरक्‍त हो जाय तो वह ही उसके लिये नरक है, वह उससे छुटकारा नहीं पाता है। जो जापक मोह के वशीभूत हो विषयासक्ति पूर्वक जप करता है, वह जिस फल में उसकी आसक्ति होती है, उसी के अनुरूप शरीर को प्राप्‍त होता है। इस प्रकार उसका पतन हो जाता है। जिसकी बुद्धि भोगों में आ‍सक्ति के कारण दूषित है तथा जो विवेकशील नहीं है, वह जापक यदि मन के चंचल रहते हुए ही जप करता है तो विनाशशील गति को प्राप्‍त होता है अथवा नरक मे गिरता है। अर्थात् विनाशशील या स्वर्गादि विचलित स्वभाव वाले लोकों को प्राप्‍त होता है या तिर्यक्–योनियों में जाता है।

जो विवेक शून्य मूढ़ जापक मोहग्रस्त हो जाता है, वह उस मोह के कारण नरक में गिरता है और उसमें गिरकर निरन्तर शोकमग्न रहता है। ‘मैं निश्‍चय ही जपका अनुष्‍ठान पूरा करूंगा,’ ऐसा दृढ़ आग्रह रखकर जो जाप‍क जप में प्रवृत्त होता है, परंतु न तो उसमें अच्छी तरह संलग्न होता है और न उसे पूरा ही कर पाता है, वह नरक में गिरता है। युधिष्ठिर ने पूछा- जो कभी निवृत न होने वाला सनातन अव्यक्‍त ब्रह्म है, उस गायत्री के जप में स्थित रहने–वाला एवं उससे भावित हुआ जापक किस कारण से यहाँ शरीर में प्रवेश करता है अर्थात् पुनर्जन्म ग्रहण करता है?

भीष्‍मजी ने कहा- राजन्! काम आदि से बद्धि दूषित होने के कारण ही उसके लिये बहुत–से नरकों की प्राप्ति अर्थात् नाना योनियों में जन्म ग्रहण करने की बात कही गयी है। जापक होना तो बहुत उत्तम है। वे उपर्युक्‍त राग आदि दोष तो उसमें दूषित बद्धि के कारण ही आते हैं।

इस प्रकार श्रीमहाभारत शांतिपर्व के अंतर्गत मोक्षधर्मपर्व में जापकका उपाख्‍यानविषयक एक सौ सतानबेवां अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. इस प्रकरण में पुनर्जन्म को ही नरक के नाम से कहा गया है। यह बात छ्ठे और सातवें श्लोक के वर्णन से स्पष्ट हो जाती है।

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