महाभारत स्त्री पर्व अध्याय 10 श्लोक 1-20

दशम (10) अध्याय: स्‍त्री पर्व (जलप्रदानिक पर्व)

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महाभारत: स्‍त्री पर्व: दशम अध्याय: श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद


स्त्रियों और प्रजा के लोगों के सहित राजा धृतराष्ट्र का रणभूमि में जाने के लिये नगर से बाहर निकलना


वैशम्पायन जी कहते हैं- राजन! विदुर की यह बात सुनकर पुरुष श्रेष्‍ठ राजा धृतराष्ट्र ने रथ जोतने की आज्ञा देकर पुन: इस प्रकार कहा। धृतराष्ट्र बोले- गान्‍धारी को तथा भरतवंशी अन्‍य सब स्त्रियों को शीघ्र ले आओ तथा वधू कुन्‍ती को साथ लेकर वहाँ जो दूसरी स्त्रियाँ हो, उन्‍हें भी बुला लो। परम धर्मज्ञ विदुर जी से ऐसा कहकर शोक से जिनकी ज्ञान शक्ति नष्‍ट-सी हो गयी थी, वे धर्मात्‍मा राजा धृतराष्ट्र रथ पर सवार हुए। गान्‍धारी पुत्र शोक से पीड़ित हो रही थीं, पति की आज्ञा-पाकर वे कुन्‍ती तथा अन्‍य स्त्रियों के साथ जहाँ राजा धृतराष्ट्र थे, वहाँ आयीं। वहाँ राजा के पास पहुँचकर अत्‍यन्‍त शोक में डूबी हुई वे सारी स्त्रियाँ एक दूसरी को पुकार-पुकारकर परस्‍पर गले से लग गयीं और जोर-जोर से फूट-फूटकर रोने लगीं। विदुर जी ने उन सब स्त्रियों को आश्‍वासन दिया। वे स्‍वयं भी उनसे अधिक आर्त हो गये थे। आँसुओं से गद्गद कण्ठ हुई उन सबको रथ पर चढ़ाकर वे नगर से बाहर निकले। तदनन्‍तर कौरवों के सभी घरों में बड़ा भारी आर्तनाद होने लगा। बूढ़ों से लेकर बच्‍चों तक सारा नगर शोक से व्‍याकुल हो उठा।

जिन स्त्रियों को पहले कभी देवताओं ने भी नहीं देखा था, उन्‍हीं को उस समय पतियों के मारे जाने पर साधारण लोग देख रहे थे। वे नारियाँ अपने सुन्‍दर केश बिखराये सारे अभूषण उतारकर एक ही वस्त्र धारण किये अनाथ की भाँति रणभूमि की ओर जा रही थीं। कौरवों के घर श्‍वेत पर्वत के समान जान पड़ते थे। उनसे जब वे स्त्रियाँ बाहर निकलीं, उस समय जिनका यूथपति मारा गया हो, पर्वतों की गुफा से निकली हुई उन चितकबरी हरिणियों के समान दिखायी देने लगीं। राजन! राजभवन के विशाल आँगन में एकत्र हुई उन किशोरी स्त्रियों के अनेक समुदाय शोक से पीड़ित होकर रणभूमि की ओर उसी प्रकार चले, जैसे बछेड़ियाँ शिक्षा भूमि पर लायी जाती हैं। एक दूसरी के हाथ पकड़कर पुत्रों, भाइयों और पिताओं के नाम ले-लेकर रोती हुई वे कुरुकुल की नारीयाँ प्रलयकाल में लोक-संहार का दृश्‍य दिखाती हुई-सी जान पड़ती थी। शोक से उनकी ज्ञानशक्ति लुप्‍त-सी हो गयी थी। वे रोती और विलाप करती हुई इधर-उधर दौड़ रही थीं। उन्‍हें कोई कर्तव्‍य नहीं सूझ रहा था। जो युवतियाँ पहले सखियों के सामने आने में भी लजाती थीं, वे ही उस दिन लाज छोड़कर एक वस्त्र धारण किये अपनी सासुओं के सामने उपस्थित हो गयी थीं। राजन! जो नारियाँ छोटे-से-छोटे शोक में भी एक-दूसरी के पास जाकर आश्‍वासन दिया करती थीं, वे ही शोक से व्‍याकुल हो परस्‍पर दृष्टिपात मात्र कर रही थीं।

उन रोती हुई सहस्रों स्त्रियों से घिरे हुए दुखी राजा धृतराष्ट्र नगर से युद्धस्‍थल में जाने के लिये तुरन्‍त लिकल पड़े। कारीगर, व्‍यापारी वैश्‍य तथा सब प्रकार के कर्मों से जीवन-निर्वाह करने वाले लोग राजा को आगे करके नगर से बाहर निकले। कौरवों का संहार हो जाने पर आर्तभाव से रोती और विलपती हुई उन नारियों का महान आर्तनाद सम्‍पूर्ण लोकों को व्‍यथित करता हुआ प्रकट होने लगा। प्रलयकाल आने पर दग्‍ध होते हुए प्राणियों के चीखने-चिल्लाने के समान उन स्त्रियों के रोने का वह महान शब्‍द गूँज रहा था। सब प्राणी ऐसा समझने लगे कि यह संहार काल आ पहुँचा है। महाराज! कुरुकुल का संहार हो जाने से अत्‍यन्‍त उद्विग्‍नचित्त हुए पुरवासी जो राजवंश के साथ पूर्ण अनुराग रखते थे, जोर-जोर से रोने लगे।

इस प्रकार श्रीमहाभारत स्त्रीपर्व के जलप्रदानिकपर्व में धृतराष्‍ट्र का नगर से निकलनाविषयक दसवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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