सप्तदश (17) अध्याय: स्त्री पर्व (जलप्रदानिक पर्व)
महाभारत: स्त्री पर्व: सप्तदश अध्याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद
प्रभो! यह बात मैंने पहले ही कह दी थी; इसलिये मुझे इस दुर्योधन के लिये शोक नहीं हो रहा है। मैं तो इन दीन राजा धृतराष्ट्र के लिये शोक मग्न हो रही हूँ, जिनके सारे भाई-बन्धु मार डाले गये। माधव! अमर्षशील, योद्धाओं में श्रेष्ठ, अस्त्र विद्या के ज्ञाता, रणदुर्मद तथा वीर शय्या पर पर सोये हुए मेरे इस पुत्र को देखो तो सही। शत्रुओं को संताप देने वाला जो दुर्योधन मूर्धाभिशिक्त राजाओं के आगे-आगे चलता था वही आज यह धूल में लोट रहा है। काल इस उलट-फेर को तो देखो। निश्चय ही वीर दुर्योधन उस उत्तम गति को प्राप्त हुआ है, जो सबके लिये सुलभ नहीं है; क्योंकि यह वीरसेवित शय्या पर सामने मुंह किये सो रहा है। पूर्वकाल में जिसके पास बैठकर सुन्दरी स्त्रियां उसके मनोरंजन करती थीं, वीर शैया पर सोये हुए आज उसी वीर का ये अमंगलकारिणी गिदड़ियाँ मन बहलाव करती हैं। जिसके पास पहले राजा लोग बैठकर उसे आनन्द प्रदान करते थे, आज मरकर धरती पर पड़े हुए उसी वीर के पास गीध बैठे हुए हैं। पहले जिसके पास खड़ी होकर युवतियां सुन्दर पंखे झला करती थीं आज उसी को पक्षीगण अपनी पाखों से हवा करते हैं। यह महाबाहू सत्य पराक्रमी बलवान वीर दुर्योधन, भीमसेन द्वारा गिराया जाकर युद्धस्थल में सिंह के मारे हुए गजराज के समान सो रहा है। श्रीकृष्ण! भीमसेन की चोट, खाकर खून से लथपथ हो गदा लिये धरती पर सोये हुए दुर्योधन को अपनी आंख से देख लो। केशव! जिस महाबाहु वीर ने पहले ग्यारह अक्षौहिणी सेनाओं को जुटा लिया था। वही अपनी अनिति के कारण युद्ध में मार डाला गया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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