महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 194 श्लोक 1-22

चतुर्नवत्यधिकशततम (194) अध्‍याय: उद्योग पर्व (अम्बोपाख्‍यान पर्व)

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महाभारत: उद्योग पर्व: चतुर्नवत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-22 का हिन्दी अनुवाद

अर्जुन के द्वारा अपनी, अपने सहायकों की तथा युधिष्ठिर की भी शक्ति का परिचय देना

वैशम्पायनजी कहते हैं- भरतश्रेष्‍ठ जनमेजय! कौरव सेना में जो बातचीत हुई थी, उसका समाचार पाकर कुन्तीनन्दन युधिष्ठिर ने अपने सब भाइयों को एकान्त में बुलाकर इस प्रकार कहा- युधिष्ठिर बोले- धृतराष्‍ट्र की सेना में जो मेरे गुप्तचर नियुक्त हैं, उन्होंने मुझे यह समाचार दिया है कि इसी विगत रात्रि में दुर्योधन ने महान व्रतधारी गंगानन्दन भीष्‍म से यह प्रश्‍न किया था कि प्रभो! आप पाण्‍डवों की सेना का कितने समय में संहार कर सकते हैं। भीष्‍मजी ने धृतराष्‍ट्र के पुत्र दुर्बुद्धि दुर्योधन को यह उत्तर दिया कि मैं एक महीने में पाण्‍डव-सेना का विनाश कर सकता हूँ। द्रोणाचार्य ने भी उतने ही समय में वैसा करने की प्रतिज्ञा की। कृपाचार्य ने दो महीने का समय बताया। यह बात हमारे सुनने में आयी है तथा महान अस्त्रवेत्ता अश्वत्थामा ने दस ही दिनों में पाण्‍डव-सेना के संहार की प्रतिज्ञा की है। दिव्यास्त्रवेत्ता कर्ण से जब कौरव-सभा में पूछा गया, तब उसने पांच ही दिनों में हमारी सेना को नष्‍ट करने की प्रतिज्ञा कर ली। अत: अर्जुन! मैं भी तुम्हारी बात सुनना चा‍हता हूँ। फाल्गुन! तुम कितने समय में शत्रुओं को नष्‍ट कर सकते हो?

राजा युधिष्ठिर के इस प्रकार पूछने पर निद्राविजयी अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण की ओर देखकर यह बात कही- ‘महाराज! नि:संदेह सभी महामना योद्धा अस्त्रविद्या के विद्वान तथा विचित्र प्रकार से युद्ध करने वाले हैं। अत: उतने दिनों में शत्रुसेना को मार सकते हैं, इसमें संशय नहीं है ‘परंतु इससे आपके मन में संताप नहीं होना चाहिये। आपका मनस्ताप तो दूर ही हो जाना चाहिये। मैं जो सत्य बात कहने जा रहा हूं, उस पर ध्‍यान दीजिये। मैं भगवान श्रीकृष्‍ण की सहायता से युक्त हुआ एकमात्र रथ को लेकर ही देवताओं सहित तीनो लोकों, सम्पूर्ण चराचर प्राणियों तथा भूत, वर्तमान और भविष्‍य को भी पलक मारते-मारते नष्‍ट कर सकता हूँ। ऐसा मेरा विश्‍वास है। ‘भगवान पशुपति ने किरातवेष में द्वन्द्वयुद्ध करते समय मुझे जो अपना भयंकर महास्त्र प्रदान किया था, वह मेरे पास मौजूद है।

‘पुरुषसिंह! प्रलयकाल में समस्त प्राणियों का संहार करते समय भगवान पशुपति जिस अस्त्र का प्रयोग करते हैं, वही यह मेरे पास विद्यमान है। ‘राजन! इसे न तो गंगानन्दन भीष्‍म जानते हैं, न द्रोणाचार्य जानते हैं, न कृपाचार्य जानते हैं और न द्रोणपुत्र अ‍श्वत्थामा को ही इसका पता है; फिर सूतपुत्र कर्ण तो इसे जान ही कैसे सकता है? ‘परंतु युद्ध में साधारण जनों को दिव्यास्त्रों द्वारा मारना कदापि उचित नहीं है; अत: हम लोग सरलतापूर्ण युद्ध के द्वारा ही शत्रुओं को जीतेंगे। ‘राजन! ये सभी पुरुषसिंह जो हमारे सहायक हैं, दिव्यास्त्रों का ज्ञान रखते हैं और सभी युद्ध की अभिलाषा रखने वाले हैं।

‘इन सबने वेदाध्‍ययन समाप्त करके यज्ञान्त स्नान किया है। ये सभी कभी परास्त न होने वाले वीर हैं। पाण्‍डुनन्दन! ये लोग समरभूमि में देवताओं की सेना को भी नष्‍ट कर सकते हैं। ‘शिखण्‍डी, सात्यकि, द्रुपदकुमार धृष्टद्युम्न, भीमसेन दोनों भाई नकुल-सहदेव, युधामन्यु, उत्तमौजा तथा राजा विराट और द्रुपद भी युद्ध में भीष्‍म और द्रोणाचार्य की समानता करने वाले हैं ‘महाबाहु शंख, महाबली घटोत्कच, महान बल और पराक्रम से सम्पन्न घटोत्कच-पुत्र अंजनपर्वा तथा संग्रामकुशल महाबाहु सात्यकि- ये सभी आपके सहायक हैं। ‘बलवान अभिमन्यु और द्रौपदी के पांचों पुत्र तो आपके साथ हैं ही। आप स्वयं भी तीनों लोकों का संहार करने में समर्थ हैं। ‘इन्द्र के समान तेजस्वी कुरुनन्दन! आप क्रोधपूर्वक जिस पुरुष को देख लें वह शीघ्र ही नष्‍ट हो जायगा। आपके इस प्रभाव को मैं जानता हूँ।'

इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्व के अन्तर्गत अम्बोपाख्‍यानपर्व में अर्जुनवाक्यविषयक एक सौ चोरानबेवां अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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