षोडश (16) अध्याय: सौप्तिक पर्व
महाभारत: सौप्तिक पर्व: षोडश अध्याय: श्लोक 1-19 का हिन्दी अनुवाद
वैशम्पायन जी कहते हैं- राजन! पापी अश्वत्थामा ने अपना अस्त्र पाण्डवों के गर्भ पर छोड़ दिया, यह जानकर भगवान श्रीकृष्ण को बड़ी प्रसन्नता हुई। उस समय उन्होंने द्रौणपुत्र से इस प्रकार कहा- ‘पहले की बात है, राजा विराट की कन्या और गाण्डीवधारी अर्जुन की पुत्रवधु जब उपप्लव्य नगर में रहती थी, उस समय किसी व्रतवान ब्राह्मण ने उसे देखकर कहा- ‘बेटी! जब कौरव वंश परिक्षीण हो जायेगा, तब तुम्हें एक पुत्र प्राप्त होगा और इसीलिये उस गर्भस्थ शिशु का नाम परिक्षित होगा।’ उस साधु ब्राह्मण का वह वचन सत्य होगा। उत्तरा का पुत्र परिक्षित ही पुन: पाण्डव वंश का प्रवर्तक होगा। सात्वतवंश शिरोमणि भगवान श्रीकृष्ण जब इस प्रकार कह रहे थे, उस समय द्रोणकुमार अश्वत्थामा अत्यन्त कुपित हो उठा और उन्हें उत्तर देता हुआ बोला- ‘कमलनयन केशव! तुम पाण्डवों का पक्षपात करते हुए इस समय जैसी बात कह गये हो, वह कभी हो नहीं सकती। मेरा वचन झूठा नहीं होगा। श्रीकृष्ण! मेरे द्वारा चलाया गया वह अस्त्र विराटपुत्री उत्तरा के गर्भ पर ही, जिसकी तुम रक्षा करना चाहते हो, गिरेगा।’ श्रीभगवान बोले- द्रोणकुमार! उस दिव्य अस्त्र का प्रहार तो अमोघ ही होगा। उत्तरा का वह गर्भ मरा हुआ ही पैदा होगा; फिर उसे लम्बी आयु प्राप्त हो जाएगी। परन्तु तुझे सभी मनीषी पुरुष कायर, पापी, बारंबार पाप कर्म करने वाला और बाल-हत्यारा समझते हैं। इसलिये तू इस पाप-कर्म का फल प्राप्त कर ले। आज से तीन हजार वर्षों तक तू इस पृथ्वी पर भटकता फिरेगा। तुझे कभी कहीं और किसी के साथ भी बातचीत करने का सुख नहीं मिल सकेगा। तू अकेला ही निर्जन स्थानों में घूमता रहेगा। ओ नीच! तू जनसमुदाय में नहीं ठहर सकेगा। तेरे शरीर से पीव और लोहू की दुर्गन्ध निकलती रहेगी; अत: तुझे दुर्गम स्थानों का ही आश्रय लेना पड़ेगा। पापात्मन! तू सभी रोगों से पीड़ित होकर इधर-उधर भटकेगा। परिक्षित तो दीर्घ आयु प्राप्त करके ब्रह्मचर्य पालन एवं वेदाध्ययन का व्रत धारण करेगा और वह शूरवीर बालक शरद्वान के पुत्र कृपाचार्य से ही सम्पूर्ण अस्त्र-शस्त्रों का ज्ञान प्राप्त करेगा। इस प्रकार उत्तम अस्त्रों का ज्ञान प्राप्त करके क्षत्रिय-धर्म में स्थित हो साठ वर्षों तक इस पृथ्वी का पालन करेगा। दुर्मते! इसके बाद तेरे देखते-देखते महाबाहु कुरुराज परिक्षित ही इस भूमण्डल का सम्राट होगा। नराधम! तेरी शस्त्राग्नि के तेज से दग्ध हुए उस बालक को मैं जीवित कर दूँगा। उस समय तू मेरे तप और सत्य का प्रभाव देख लेना। व्यास जी ने कहा- द्रोणकुमार! तूने हम लोगों का अनादर करके यह भयंकर कर्म किया है, ब्राह्मण होने पर भी तेरा आचार ऐसा गिर गया है और तूने क्षत्रिय धर्म को अपना लिया है; इसलिये देवकीनन्दन श्रीकृष्ण ने जो उत्तम बात कही है, वह सब तेरे लिये होकर ही रहेगी, इसमें संशय नहीं है। अश्वत्थामा बोला- ब्रह्मन! अब मैं मनुष्यों में केवल आपके ही साथ रहूँगा। इन भगवान पुरुषोत्तम की बात सत्य हो। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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