महाभारत विराट पर्व अध्याय 69 श्लोक 1-11

एकोनसप्ततितम (69) अध्याय: विराट पर्व (गोहरण पर्व)

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महाभारत: विराट पर्व: एकोनसप्ततितम अध्याय: श्लोक 1-11 का हिन्दी अनुवाद


राजा विराट और उत्तर की विजय के विषय में बातचीत

उत्तर ने कहा- पिताजी! मैंने गौओं को नहीं जीता है और न मैंने शत्रुओं पर ही विजय पायी है। यह सब कार्य तो किसी देव कुमार ने किया है। मैं तो डरकर भागा जा रहा था; किंतु वज्र के समान सुदृढ़ शरीर वाले उस तरुण देव पुत्र ने मुझे लौटाया और वह स्वयं ही रथ के पिछले भाग में रथी बनकर बैठ गया। उसी ने उन गौओं को जीता है और कौरवों को भी परास्त किया है। पिता जी! यह सब उसी वीर का कर्म है। मैंने कुछ नहीं किया है। उसी ने कृपाचार्य, द्रोणाचार्य, अश्वत्थामा, कर्ण, भीष्म और दुर्योधन- इन छहों महारथियों को अपने बाणों से मार कर युद्ध से भगा दिया। वहाँ जैसे यूथपति गजराज अपने झुंड के हाथियों सहित भागा जाता हो, उसी प्रकार दुर्योधन ओर विकर्ण आदि राजपुत्र भयभीत होकर भागने लगे; तब उन महाबली देवपुत्र ने दुर्योधन से कहा-

धृतराष्ट्र कुमार! अब हस्तिनापुर में तेरी जीवन रक्षा का कोइ उपाय मुझे नहीं दिखायी देता; अतः देश- देशान्तरों में घूमकर अपनी जान बचा। ‘राजन! भागने से तू नहीं बच सकता। युद्ध मे मन लगा। जीत लेगा, तो पृथ्वी का श्राज्य भोगेगा अथवा मारे जाने पर तुझे स्वर्ग मिलेगा’। महाराज! इतना सुनना था कि नरश्रेष्ठ दुर्योधन साँप की भाँति फुँफकारता हुआ रथ के द्वारा लौट आया और मन्त्रियों से झिारकर उस देवपुत्र पर वज्र सरीखे बाणों की वर्षा करने लगा। मारिष! उस समय उसे देखकर मेरे तो रोंगट खड़े हो गये ओर जाँघें काँपने लगी; किंतु उस देवपुत्र ने अपने बाणों द्वारा सिंह के समान पराक्रमी दुर्योधन और उसकी सेना को संतप्त कर दिया। सिंह के समान सुदृढ़ शरीर वाले उस तरुण वीर ने रथारोहियों की सेना को छिन्न-भिन्न करके हँसते-हँसते उन कौरवों को भी धराशायी कर दिया, जिससे उनके कपड़े उतार लिये गये। जैसे मदोन्मत्त सिंह वन में विचरने वाले मृगों को परास्त करता है, उसी प्रकार उस वीर देवपुत्र ने अकेले ही उन छः महारथियों को हराया है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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