महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 132 श्लोक 1-17

द्वात्रिंशदधिकशततम (132) अध्याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

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महाभारत: अनुशासन पर्व: द्वात्रिंशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-17 का हिन्दी अनुवाद


दिग्गजों का धर्म सम्बन्धी रहस्य एवं प्रभाव

भीष्म जी ने कहते हैं- राजन! तदनन्तर कमल के समान कान्तिमान कमलोद्भव ब्रह्मा जी ने देवताओं तथा शचीपति इन्द्र से इस प्रकार कहा- ‘यह रसातल में विचरने वाला, महाबली, शक्तिशाली, महान सत्त्व और पराक्रम से युक्त तेजस्वी रेणुक नाम वाला नाग यहाँ उपस्थित है। सब-के-सब महान गजराज (दिग्गज) अत्यन्त तेजस्वी और महापराक्रमी होते हैं। वे पर्वत, वन और काननों सहित समूची पृथ्वी को धारण करते हैं। यदि आप लोग आज्ञा दें तो रेणुक उन महान गजों के पास जाकर धर्म के समस्त गोपनीय रहस्यों को पूछे।'

पितामह ब्रह्मा जी की बात सुनकर शान्त चित्त वाले देवताओं ने उस समय रेणुक को उस स्थान पर भेजा, जहाँ पृथ्वी को धारण करने वाले वे दिग्गज मौजूद थे।

रेणुक ने कहा- 'महाबली दिग्गजो! मुझे देवताओं और पितरों ने आज्ञा दी है, इसलिये यहाँ आया हूँ और आप लोगों के जो धर्म विषयक गूढ़ विचार हैं, उन्हें मैं यथार्थ रूप से सुनना चाहता हूँ। महाभाग दिग्गजो! आपकी बुद्धि में जो धर्म का तत्त्व निहित हो, उसे कहिये।'

दिग्गजों ने कहा- कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष में आश्लेषा नक्षत्र और मंगलमयी अष्टमी तिथि का योग होने पर जो मनुष्य आहार-संयमपूर्वक क्रोधशून्य हो निम्नांकित मन्त्र का पाठ करते हुए श्राद्ध के अवसर पर हमारे लिये गुड़ मिश्रित भात देता है, (वह महान फल का भागी होता है)।

बलदेव (शेष या अनन्त) आदि जो अत्यन्त बलशाली नाग हैं, वे अनन्त, अक्षय, नित्य फनधारी और महाबली हैं। वे तथा उनके कुल में उत्पन्न हुए जो अन्य विशाल भुजंगम हों, वे भी मेरे तेज और बल की वृद्धि के लिये मेरी दी हुई इस बलि को ग्रहण करें। जब श्रीमान भगवान नारायण ने इस पृथ्वी का एकार्णव के जल से उद्धार किया था, उस समय इस वसुन्धरा का उद्धार करते हुए उन भगवान के श्रीविग्रह में जो बल था, वह मुझे प्राप्त हो। इस प्रकार कहकर किसी बाँबी पर बलि निवेदन करे। उस पर नागकेसर बिखेर दे, चन्दन चढ़ा दे और उसे नीले कपड़े से ढक दे तथा सूर्यास्त होने पर उस बलि को बाँबी के पास रखे दे। इस प्रकार संतुष्ट होकर पृथ्वी के नीचे भार से पीड़ित होने पर भी हम सब लोगों को वह परिश्रम प्रतीत नहीं होता है और हम लोग सुखपूर्वक वसुधा का भार वहन करते हैं। भार से पीड़ित होने पर भी किसी से कुछ न चाहने वाले हम सब लोग ऐसा ही मानते हैं।

ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य अथवा शूद्र यदि उपवासपूर्वक एक वर्ष तक इस प्रकार हमारे लिये बलिदान करे तो उसका महान फल होता है। बाँबी के निकट बलि अर्पित करने पर वह हमारे लिये अधिक फल देने वाला माना गया है। तीनों लोकों में जो समस्त महापराक्रमी नाग हैं, वे इस बलिदान से सौ वर्षॉं के लिये यथार्थ रूप से सत्कृत हो जाते हैं। दिग्गजों के मुख से यह बात सुनकर महाभाग देवता, पितर और ऋषि रेणुक नाग की भूरि-भूरि प्रशंसा करने लगे।


इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासन पर्व के अंतर्गत दानधर्म पर्व में दिग्गजों का धर्म सम्बंधी रहस्य विषयक एक सौ बत्तीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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