पच्चष्टितम (65) अध्याय: कर्ण पर्व
महाभारत: कर्ण पर्व: पच्चष्टितम अध्याय: श्लोक 1-12 का हिन्दी अनुवाद
परंतु वहाँ अपने भाई अजमीढकुल-नन्दन युधिष्ठिर को न देखकर किरीटधारी अर्जुन ने बड़े वेग से भीमसेन के पास जा उनसे राजा का समाचार पूछते हुए कहा-‘भैया! इस समय हमारे महाराज कहाँ हैं। भीमसेन ने कहा- धर्मपुत्र राजा युधिष्ठिर यहाँ से हट गये हैं। कर्ण के बाणों से उनके सारे अंग संतप्त हो रहे हैं। सम्भव है, वे किसी प्रकार जी रहे हों। अर्जुन बोले- यदि ऐसी बात है तो आप कुरुश्रेष्ठ राजा युधिष्ठिर का समाचार लाने के लिये शीघ्र ही यहाँ से जायं। निश्चय ही कर्ण के बाणों से अत्यन्त घायल होकर राजा शिविर में चले गये हैं। भैया भीमसेन! जो वेगशाली वीर युधिष्ठिर द्रोणाचार्य के द्वारा किये गये प्रहारों तथा अत्यन्त तीखे बाणों से अच्छी तरह घायल किये जाने पर भी विजय की प्रतीक्षा में तब तक युद्धस्थल में डटे रहे, जब तक कि आचार्य द्रोण मारे नहीं गये। वे महानुभाव पाण्डव शिरोमणि आज कर्ण के द्वारा संग्राम में संशयापन्न अवस्था में डाल दिये गये हैं; अत: आप शीघ्र ही उनका समाचार जानने के लिये जाइये, मैं यहाँ शत्रुओं को रोके रहूंगा। भीमसेन ने कहा- महानुभाव! तुम्हीं जाकर भरत कुल-भूषण नरेश का समाचार जानो। अर्जुन! यदि मैं यहाँ से जाऊंगा तो मेरे वीर शत्रु मुझे डरपोक कहेंगे। तब अर्जुन ने भीमसेन से कहा-‘भैया! संशप्तक गण मेरे विपक्ष में खड़े हैं। इन्हें मारे बिना आज मैं इस शत्रु समुदायरुपी गोष्ठ से बाहर नहीं जा सकता’। यह सुनकर भीमसेन ने अर्जुन से कहा- ‘कुरुकुल श्रेष्ठ वीर धनंजय! मैं अपने ही बल का भरोसा करके संग्राम-भूमि में सम्पूर्ण संशप्तकों के साथ युद्ध करुंगा, तुम जाओ,।संजय कहते हैं-राजन! शत्रुओं की मण्डली में अपने भाई भीमसेन का यह अत्यन्त दुष्कर वचन सुनकर कि ‘मैं अकेला ही असह्य संशप्तक सेना का सामना करूँगा' उदार हृदय वाले महात्मा कपिध्वज अर्जुन ने सत्यपराक्रमी भाई भीम के उस सत्य वचन को श्रवणगोचर करके उसे अप्रमेय, वृष्णिवंशा वतंस नारायणावतार भगवान श्रीकृष्ण को बताया और उस समय कुरुश्रेष्ठ युधिष्ठिर का दर्शन करने की इच्छा से जाने को उद्यत हो इस प्रकार कहा। |
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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