महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 23 श्लोक 1-19

त्रयोविंश (23) अध्याय: द्रोण पर्व (संशप्‍तकवध पर्व)

Prev.png

महाभारत: द्रोण पर्व: त्रयोविंश अध्याय: श्लोक 1-19 का हिन्दी अनुवाद

पाण्‍डव सेना के महारथियों के रथ, घोड़े, ध्‍वज तथा धनुषों का विवरण

  • धृतराष्‍ट्र ने पूछा– संजय! क्रोध में भरे हुए भीमसेन आदि जो योद्धा द्रोणाचार्य पर चढ़ाई कर रहे थे, उन सबके रथों के[1] चिह्न कैसे थे? यह मुझे बताओ। (1)
  • संजय कहते है– राजन! रीछ के समान रंग वाले घोड़ों से जुते हुए रथ पर बैठकर भीमसेन को आते देख चाँदी के समान श्‍वेत घोड़ों वाले शूरवीर सात्‍यकि भी लौट पड़े। (3)
  • सारंग[2] के समान[3] रंग के घोड़ों से युक्‍त युधामन्यु, स्‍वयं ही अपने घोड़ों को शीघ्रतापूर्वक हाँकता हुआ द्रोणाचार्य के रथ की ओर लौट पड़ा। वह दुर्जय वीर क्रोध में भरा हुआ था। (3)
  • पांचालराजकुमार धृष्टद्युम्न कबूतर[4] के समान[5] रंग वाले सुवर्णभूषित एवं अत्‍यन्‍त वेगशाली घोड़ों के द्वारा लौट आया। (4)
  • नियमपूर्वक व्रत का पालन करने वाला क्षत्रधर्मा अपने पिता धृष्टद्युम्न की रक्षा और उनके अभीष्‍ट मनोरथ की उत्तम सिद्धि चाहता हुआ लाल रंग के घोड़ों से युक्‍त रथ पर आरूढ़ हो लौट आया। (5)
  • शिखण्‍डी का पुत्र क्षत्रदेव, कमलपत्र के समान रंग तथा निर्मल नेत्रों वाले सजे सजाये घोड़ों को स्‍वयं ही शीघ्रतापूर्वक हाँकता हुआ वहाँ आया। (6)
  • तोते की पाँख के समान रोम वाले दर्शनीय काम्बोज[6] देशीय घोड़े नकुल को वहन करते हुए बड़ी शीघ्रता के साथ आपके सैनिकों की ओर दौड़े। (7)
  • भरतनन्‍दन! दुर्धर्ष युद्ध का संकल्‍प लेकर क्रोध में भरे हुए उत्तमौजा को मेघ के समान श्‍याम वर्ण वाले घोड़े युद्धस्‍थल की ओर ले जा रहे थे। (8)
  • इसी प्रकार अस्‍त्र–शस्‍त्रों से सम्‍पन्‍न सहदेव को तीतर के समान चितकबरे रंग वाले तथा वायु के समान वेगशाली घोड़े उस भयंकर युद्ध में ले गये। (9)
  • हाथी के दाँत के समान सफेद रंग, काली पूँछ तथा वायु के समान तीव्र एवं भयंकर वेग वाले घोड़े नरश्रेष्‍ठ राजा युधिष्ठिर को रणक्षेत्र में ले गये। (10)
  • सोने के उत्‍तम आवरणों से ढके हुए, वायु के समान वेगशाली घोड़ों द्वारा सारी सेनाओं ने महाराज युधिष्ठिर को सब ओर से घेर रखा था। (11)
  • राजा युधिष्ठिर के पीछे पांचालराज द्रुपद चल रहे थे। उनका छत्र सोने का बना हुआ था। वे भी समस्‍त सैनिकों द्वारा सुरक्षित थे। (12)
  • वे 'ललाम'[7]और 'हरि'[8] संज्ञा वाले घोड़ों से, जो सब प्रकार के शब्‍दों को सुनकर उन्‍हें सहन करने में समर्थ थे, सुशोभित हो रहे थे। उस युद्धस्‍थल में समस्‍त राजाओं के मध्‍य भाग में राजा द्रुपद निर्भय होकर द्रोणाचार्य का सामना करने के लिये आये। (13)
  • द्रुपद के पीछे सम्‍पूर्ण महारथियों के साथ राजा विराट शीघ्रतापूर्वक चल रहे थे। केकय राजकुमार, शिखण्‍डी तथा धृष्‍टकेतु– ये अपनी-अपनी सेनाओं से घिरकर मत्‍स्‍यराज विराट के पीछे चल रहे थे। (14)
  • शत्रुसूदन मत्‍स्‍यराज विराट के रथ को जो वहन करते हुए शोभा पा रहे थे, वे उत्तम घोड़े पाडर के फूलों के समान लाल और सफेद रंग वाले थे। (15)
  • हल्‍दी के समान पीले रंग वाले तथा सुवर्णमय माला धारण करने वाले वेगशाली घोड़े विराटराज के पुत्र को शीघ्रतापूर्वक रणभूमि की ओर ले जा रहे थे। (16)
  • पाँच भाई केकय-राजकुमार इन्‍द्रगोप (वीरबहूटी) के समान रंगवाले घोड़ों द्वारा रणभूमि में लौट रहे थे। उन पाँचों भाईयों की कान्ति सुवर्ण के समान थी तथा वे सब के सब लाल रंग की ध्‍वजा पताका धारण किये हुए थे। (17)
  • सुवर्ण की मालाओं से विभूषित वे सभी युद्धविशारद शूरवीर मेघों के समान बाणवर्षा करते हुए कवच आदि से सुसज्जित दिखायी देते थे। (19)
  • अमित तेजस्‍वी पांचालराजकुमार शिखण्‍डी को तुम्‍बुरु के दिये हुए मिट्टी के कच्‍चे बर्तन के समान रंगवाले दिव्‍य अश्व वहन करते थे।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. घोड़े, ध्वजा आदि
  2. नीलकंठी टीका में अश्व शास्त्र के अनुसार घोड़ों के रंग और लक्षण आदि का परिचय दिया गया है। उसमें से कुछ आवश्यक बातें यहाँ यथास्थान उद्धृत की जाती हैं। सारंग सूचित करने वाला रंग इस प्रकार है-
    सितनीलारुणो वर्ण: सारंग सदृशश्च स:।
  3. सफेद, नीले और लाल
  4. कबूतर का रंग बताने वाला रंग यों मिलता है-
    पारावतकपोताभ: सितनीलसमंवयात्
  5. सफेद और नीले
  6. काम्बोज(काबुल) के घोड़ों का लक्षण-
    महाललाटजघनस्कन्धवक्षोजवा: हया:।
    दीर्घग्रीवायता ह्रस्वमुष्का: काम्बोज: स्मृता:॥
    जिनके ललाट, जाँघें, कन्धे, छाती औए वेग महान होते हैं, गर्दन लम्बी और चौड़ी होती है और अण्डकोष बहुत छोटे होते हैं वे काबुली घोड़े माने गये हैं।
  7. जिस घोड़े के ललाट के मध्य भाग में तारा के समान श्वेत चिह्न हो, उसके उस चिह्न का नाम ललाम है। उससे युक्त ललाम ही कहलाता है। यथा-
    श्वेतं ललाटमध्यस्थं तारारूपं हयस्य यत्।
    ललामं चापि तत्प्राहुर्ललामोअश्वस्तदंवित:॥
  8. 'हरि' का लक्षण इस प्रकार दिया गया है-
    सकेशराणि रोमाणि सुवर्णाभानि यस्य तु।
    हरि: स वर्णतोअश्वस्तु पीतकौशेयसंनिभय:॥
    जिसकी गर्दन के बड़े-बड़े बाल और शरीर के रोएँ सुनहरे रंग के हो, जो रेशमी पीताम्बर के समान जान पड़ता हो, वह घोड़ा हरि कहलाता है।

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः