महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 116 श्लोक 1-26

षोडशाधिकशततम (116) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)

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महाभारत: द्रोण पर्व: षोडशाधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-26 का हिन्दी अनुवाद



सात्यकिका पराक्रम तथा दुर्योधन और कृतवर्माकी पुनः पराजय

संजय कहते हैं- महाराज! वे प्रहारकुशल संपूर्ण योद्धा सावधान हो बड़ी फुर्ति के साथ बाण समूहों की वर्षा करते हुए वहाँ युयुधान के साथ युद्ध करने लगे। द्रोणाचार्य ने सात्यकि को सतहत्तर तीखे बाणों से घायल कर दिया। फिर दुर्मर्षण ने बारह और दुःसह ने दस बाणों से उन्हें बींध डाला। तत्पश्चात विकर्ण ने भी कंक की पांख वाले तीस तीखे बाणों से सात्यकि की बायीं पसली और छाती छेद डाली। आर्य तदनंतर दुर्मुख ने दस, दुःशासन ने आठ और चित्रसेन ने दो बाणों से सात्यकि को घायल कर दिया। राजन! उस रणक्षेत्र में दुर्योधन तथा अन्य शूरवीर महारथियों ने भारी बाण-वर्षा करके सात्यकि को पीड़ित कर दिया। आपके महारथी पुत्रों द्वारा सब ओर से घायल किये जाने पर वृष्णिवंशी वीर सात्यकि ने उन सबको पृथक-पृथक अपने बाणों से बींधकर बदला चुकाया। उन्होंने द्रोणाचार्यको तीन, दुःसह को नौ, विकर्ण को पच्चीस, चित्रसेन को सात, दुर्मर्षण को बारह, विविंशति को आठ, सत्यव्रत को नौ तथा विजय को दस बाणों से घायल किया।

तदनंतर महारथी सात्यकि ने सोने के अंगद से विभूषित अपने विशाल धनुष को हिलाते हुए तुरंत ही आपके महारथी पुत्र दुर्योधन पर आक्रमण किया। सब लोगों के राजा और समस्त संसार के विख्यात महारथी दुर्योधन को उन्होंने अपने बाणों द्वारा गहरी चोट पहुँचायी। फिर तो उन दोनों में भारी युद्ध छिड़ गया। उन दोनों महारथियों ने समरभूमि में बाणों का संधान और तीखे बाणों का प्रहार करते हुए एक दूसरे को अदृश्य कर दिया। सात्यकि कुरुराज दुर्योधन के बाणों से बिंधकर अधिक मात्रा में रक्त बहाने लगे। उस समय वे अपना रक्त बहाते हुए लाल चन्दनवृक्ष के समान अधिक शोभा पा रहे थे। सात्यकि के बाणसमूहों से घायल होकर आपका पुत्र दुर्योधन सुवर्णमय मुकुट धारण किये ऊँचे यूप के समान सुशोभित हो रहा था। राजन! रणक्षेत्र में सात्यकि ने धनुर्धर दुर्योधन के धनुष को एक क्षुरप्र द्वारा हँसते हुए से काट दिया। धनुष कट जाने पर उन्होंने बहुत-से बाण मारकर दुर्योधन के शरीर को चुन दिया। शीघ्रतापूर्वक हाथ चलाने वाले अपने शत्रु सात्यकि के बाणों द्वारा विदीर्ण होकर राजा दुर्योधन रणभूमि में विपक्षी के उस विजयसूचक पराक्रम को सह न सका।

उसने सोने कि पीठ वाले दूसरे दुर्धुर्ष धनुषको लेकर शीघ्र ही सौ बाणों से सात्यकि को घायल कर दिया। आपके बलवान और धनुर्धर पुत्र के द्वारा अत्यंत घायल किये जाने पर सात्यकि ने भी अमर्ष के वशीभूत होकर आपके पुत्र को बड़ी पीड़ा दी। राजा को पीड़ित देखकर आपके अन्य महारथी पुत्रों ने बलपूर्वक बाणों की वर्षा करके सात्यकि को आच्छादित कर दिया। आपके बहुसंख्यक महारथी पुत्रों द्वारा बाणों से आच्छादित किये जाने पर सात्यकि ने उनमें से एक-एक को पहले पाँच-पाँच बाणों से घायल किया। फिर सात-सात बाणों से बींध डाला। तत्पश्चात तुरंत ही आठ शीघ्रगामी बाणों द्वारा दुर्योधन को भी गहरी चोट पहुँचायी। इसके बाद युयुधान ने हँसते हुए ही दुर्योधन के शत्रु-भीषण धनुष को और मणिमय नाग से चिह्नित ध्वज को भी बाणों द्वारा काट गिराया। फिर चार तीखे बाणों से उसके चारों घोड़ों को मारकर महायशस्वी सात्यकि ने क्षुरप्र द्वारा उसके सारथी को भी मार गिराया। तदनंतर हर्ष में भरे हुए सात्यकि ने महारथी कुरुराज दुर्योधन पर बहुत-से मर्मभेदी बाणों की वर्षा आरंभ कर दी। राजन! सात्यकि के श्रेष्ठ बाणों द्वारा समरांगण में क्षत-विक्षत होकर आपका पुत्र दुर्योधन सहसा भागा और धनुर्धर चित्रसेन के रथ पर जा चढ़ा। जैसे आकाश में राहु चंद्रमा पर ग्रहण लगाता है, उसी प्रकार सात्यकि द्वारा राजा दुर्योधन को ग्रस्त होते देख वहाँ सब लोगों में हाहाकार मच गया। उस कोलाहल को सुनकर महारथी कृतवर्मा सहसा वहीं आ पहुँचा, जहाँ शक्तिशाली सात्यकि खड़े थे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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