एकादशाधिकशततम (111) अध्याय: शान्ति पर्व (राजधर्मानुशासन पर्व)
महाभारत: शान्ति पर्व: द्वयधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-13 का हिन्दी अनुवाद
व्रत और नियमों के पालन में तत्पर हो कभी पत्ता चबा लेता और कभी पानी पीकर ही रह जाता था। उसका जीवन संयम में बँध गया था। वह श्मशान भूमि में ही रहता था। वहीं उसका जन्म हुआ था, इसलिये वही स्थान उसे पसंद था। उसे और कहीं जाकर रहने की रुचि नहीं होती थी। सियार का इस तरह पवित्र आचार-विचार से रहना उसके सभी जाति-भाइयों को अच्छा न लगा। यह सब उनके लिये असहाय हो उठा; इसलिये वे प्रेम और विनयभरी बातें कहकर उसकी बुद्धि को विचलित करने लगे। उन्होंने कहा ‘भाई सियार! तू तो मांसाहारी जीव है और भयंकर श्मशान भूमि में निवास करता है, फिर भी पवित्र आचार-विचार से रहना चाहता है- वह विपरीत निश्चय हैं। ‘भैया! अत: तू हमारे ही समान होकर रह। तेरे लिये भोजन तो हम लोग ला दिया करेंगे। तू इस शौचाचार का नियम छोड़कर चुपचाप खा लिया करना। तेरी जाति का जो सदा से भोजन रहा है, वही तेरा भी होना चाहिये। उनकी ऐसी बात सुनकर सियार एकाग्रचित्त हो मधुर, विस्तृत, युक्तियुक्त तथा कोयल वचनों द्वारा इस प्रकार बोला-बन्धुओं! अपने बुरे आचरणों से ही हमारी जाति का कोई विश्वास नहीं करता। अच्छे स्वभाव और आचरण से ही कुल की प्रतिष्ठा होती हैं, अत: मैं भी वही कर्म करना चाहता हूँ, जिसमें अपने वंश का यश बढ़े। ‘यदि मेरा निवास श्मशान भूमि में हैं तो इसके लिये मैं जो समाधान देता हूँ, उसको सुनो! आत्मा ही शुभ कर्मों के लिये प्ररेणा करता है। कोई आश्रम ही धर्म का कारण नहीं हुआ करता। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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