महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 96 श्लोक 1-18

षण्णवतितम (96) अध्‍याय: उद्योग पर्व (भगवादयान पर्व)

Prev.png

महाभारत: उद्योग पर्व: षण्णवतितम अध्याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद
परशुराम जी का दम्भोद्भव की कथा द्वारा नर-नारायण स्वरूप अर्जुन और श्रीकृष्ण का महत्त्व वर्णन करना
  • वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! महात्मा श्रीकृष्ण के ऐसी बात कहने पर सम्पूर्ण सभासद चकित हो गये। उनके अंगों में रोमांच हो आया। (1)
  • वे सब भूपाल मन ही मन यह सोचने लगे कि भगवान के इन वचनों का उत्तर कोई भी मनुष्य नहीं दे सकता है। (2)
  • इस प्रकार उन सब राजाओं के मौन ही रह जाने पर जमदग्निनंदन परशुराम ने कौरव सभा में इस प्रकार कहा- (3)
  • 'राजन! तुम नि:शंक होकर मेरी यह उदाहरण युक्त बात सुनो। सुनकर यदि इसे कल्याणकारी और उत्तम समझो तो स्वीकार करो। (4)
  • 'पूर्वकाल की बात है, दम्भोभ्दव नाम से प्रसिद्ध एक सार्वभौम सम्राट इस सम्पूर्ण अखंड भूमंडल का राज्य भोगते थे, यह हमारे सुनने में आया है। (5)
  • 'वे महारथी और पराक्रमी नरेश प्रतिदिन रात बीतने पर प्रात: काल उठकर ब्राह्मणों और क्षत्रियों से इस प्रकार पूछा करते थे- (6)

'क्या इस जगत में कोई ऐसा शस्त्रधारी शूद्र, वैश्य, क्षत्रिय अथवा ब्राह्मण है, जो युद्ध में मुझसे बढ़कर अथवा मेरे समान भी हो सके? (7)

  • 'इसी प्रकार पूछते हुए वे राजा दम्भोभ्दव महान गर्व से उन्मत्त हो दूसरे किसी को कुछ भी न समझते हुए इस पृथ्वी पर विचरने लगे (8)
  • 'उस समय सर्वथा निर्भय, उदार एवं विद्वान ब्राह्मणों ने बारंबार आत्मप्रशंसा करने वाले उन नरेश को मना किया। (9)
  • 'उनके मना करने पर भी वे ब्राह्मणों से बार-बार प्रश्न करते ही रहे। उनका अहंकार बहुत बढ़ गया था। वे धन-वैभव के मद से मतवाले हो गये थे। राजा को यही बारंबार प्रश्न दुहराते देख वेद के सिद्धान्त का साक्षात्कार करने वाले महामना तपस्वी ब्राह्मण क्रोध से तमतमा उठे और उनसे इस प्रकार बोले-(10-11)
  • 'राजन! दो ऐसे पुरुष रत्न हैं, जिन्होंने युद्ध में अनेक योद्धाओं पर विजय पायी है। तुम कभी उनके समान न हो सकोगे'। (12)
  • 'उनके ऐसा कहने पर राजा ने पुन: उन ब्राह्मणों से पूछा- 'वे दोनों वीर कहाँ हैं? उनका जन्म किस स्थान में हुआ है? उनके कर्म कौन-कौन से हैं और उनके नाम क्या हैं? (13)
  • ब्राह्मण बोले- भूपाल! हमने सुना है कि वे नर-नारायण नाम वाले तपस्वी हैं और इस समय मनुष्य लोक में आए हैं। तुम उन्हीं दोनों के साथ युद्ध करो। (14)
  • सुना है, वे दोनों महात्मा नर और नारायन गंधमादन पर्वत पर ऐसी घोर तपस्या कर रहे हैं, जिसका वाणी द्वारा वर्णन नहीं हो सकता। (15)
  • राजा को यह सहन नहीं हुआ। उन्होंने रथ, हाथी, घोड़े, पैदल, शकट और ऊंट इन छ: अंगों से युक्त विशाल सेना को सुसज्जित करके उस स्थान की यात्रा की, जहाँ कभी पराजित न होने वाले वे दोनों महात्मा विद्यमान थे। (16)
  • राजा उनकी खोज करते हुए दुर्गम एवं भयंकर गंधमादन पर्वत पर गये और वन में स्थित उन तपस्वी महात्माओं के पास जा पहुँचे। (17)
  • वे दोनों पुरुष रत्न भूख-प्यास से दुर्बल हो गये थे। उनके सारे अंगों में फैली हुई नस-नाड़ियाँ स्पष्ट दिखाई देती थीं। वे सर्दी-गर्मी और हवा का कष्ट सहते-सहते अत्यंत कृशकाय हो रहे थे। (18)

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः