प्रथम (1) अध्याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)
महाभारत: अनुशासन पर्व: द्वितीय अध्याय: श्लोक 1-22 का हिन्दी अनुवाद
भीष्म जी ने कहा- "राजन! एक गृहस्थ ने जिस प्रकार धर्म का आश्रय लेकर मृत्यु पर विजय पायी थी, उसके विषय में एक प्राचीन इतिहास का उदाहरण दिया जाता है। नरेश्वर! प्रजापति मनु के एक पुत्र हुआ, जिसका नाम था इक्ष्वाकु। राजा इक्ष्वाकु सूर्य के समान तेजस्वी थे। उन्होंने सौ पुत्रों को जन्म दिया। भारत! उनमें से दसवें पुत्र का नाम दशाश्व था, जो माहिष्मतीपुरी में राज्य करता था। वह बड़ा ही धर्मात्मा और सत्यपराक्रमी था। दशाश्व का पुत्र भी बड़ा धर्मात्मा राजा था। उसका मन सदा सत्य, तपस्या और दान में ही लगा रहता था। वह राजा इस भूतल पर मदिराश्व के नाम से विख्यात था और सदा वेद एवं धनुर्वेद के अभ्यास में संलग्न रहता था। मदिराश्व का पुत्र महाभाग, महातेजस्वी, महान धैर्यशाली और महाबली द्युतिमान नाम से प्रसिद्ध राजा हुआ। द्युतिमान का पुत्र परम धर्मात्मा राजा सुवीर हुआ, जो सम्पूर्ण लोकों में विख्यात था। वह धर्मात्मा, कोश (धन-भण्डार) से सम्पन्न तथा दूसरे देवराज इन्द्र के समान पराक्रमी था। सुवीर का पुत्र दुर्जय नाम से विख्यात हुआ। वह सभी संग्रामों में शत्रुओं के लिये दुर्जय तथा सम्पूर्ण शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ था। इन्द्र के समान शरीर वाले राजा दुर्जय के एक पुत्र हुआ, जो अश्विनीकुमारों के समान कान्तिमान था। उसका नाम था दुर्योधन। वह राजर्षियों में श्रेष्ठ महान राजा था। इन्द्र के समान पराक्रमी और युद्ध से कभी पीछे न हटने वाले राजा दुर्योधन के राज्य में इन्द्र सदा ठीक समय पर और उचित मात्रा में ही वर्षा करते थे। उनका नगर और राज्य रत्न, धन, पशु तथा भाँति-भाँति के धान्यों से उन दिनों भरा-पूरा रहता था। उनके राज्य में कहीं कोई भी कृपण, दुर्गतिग्रस्त, रोगी अथवा दुर्बल मनुष्य दृष्टिगोचर नहीं होता था। वह राजा अत्यन्त उदार, मधुरभाषी, किसी के दोष न देखने वाला, जितेन्द्रिय, धर्मात्मा, दयालु और पराक्रमी था। वह कभी अपनी प्रशंसा नहीं करता था। राजा दुर्योधन वेद-वेदांगों का पारंगत विद्वान, यज्ञकर्ता, जितेन्द्रिय, मेधावी, ब्राह्मण भक्त और सत्यप्रतिज्ञ था। वह सब को दान देता और किसी का भी अपमान नहीं करता था। भारत! एक समय शीतल जलवाली पवित्र एवं कल्याणमयी देवनदी नर्मदा उस पुरुषसिंह को सम्पूर्ण हृदय से चाहने लगी और उसकी पत्नी बन गयी। राजन! उस नदी के गर्भ से राजा के द्वारा एक कमललोचना कन्या उत्पन्न हुई, जो नाम से तो सुदर्शना थी ही, रूप से भी सुदर्शना (सुन्दर एवं दर्शनीय) थी। युधिष्ठिर! दुर्योधन की वह सुन्दर वर्णवाली पुत्री जैसी रूपवती थी, वैसी रूप-सौन्दर्यशालिनी स्त्री नारियों में पहले कभी नहीं हुई थी। राजन! राजकन्या सुदर्शना पर साक्षात अग्निदेव आसक्त हो गये और उन्होंने ब्राह्मण का रूप धारण करके राजा से उस कन्या को माँगा। राजा यह सोचकर कि एक तो यह दरिद्र है और दूसरे मेरे समान वर्ण का नहीं है, अपनी पुत्री सुदर्शना को उस ब्राह्मण के हाथ में नहीं देना चाहते थे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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