द्विनवत्यधिकशततम (192) अध्याय: द्रोण पर्व (द्रोणवध पर्व)
महाभारत: द्रोणपर्व: द्विनवत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-22 का हिन्दी अनुवाद
राजाओं में वह संघर्ष छिड़ जाने पर उस युद्धस्थल में क्रूरता का ताण्डव होने लगा। जैसे पूर्व (प्रलय) काल में क्रोध में भरे हुए रुद्र देव के द्वारा पशुओं (प्राणियों) का संहार होते समय निर्दयता का दृश्य उपस्थित हुआ था। भारत! कटकर गिरे हुए हाथों, मस्तकों, धनुषों, छत्रों और चंवरों के संग्रहों से उस समरांगण के विभिन्न प्रदेशों में उक्त वस्तुओं के ढेर के ढेर दिखायी दे रहे थे। टूटे पहिये वाले रथों, गिराये हुए विशाल ध्वजों और मारे गये शूरवीर घुड़सवारों से वहाँ की भूमि आच्छादित हो गयी थी। कुरुश्रेष्ठ! बाणों के आघात से कटे हुए योद्धा उस महा-समर में अनेक प्रकार की चेष्टाएं करते और छटपटाते दिखायी देते थे। देवासुर संग्राम के समान जब वह घोर युद्ध चल रहा था, उस समय धर्मराज युधिष्ठिर ने अपने पक्ष के क्षत्रिय योद्धाओं से इस प्रकार कहा- 'महारथियों! तुम सब लोग पूर्णत: सावधान होकर द्रोणाचार्य पर धावा करो। ये वीर द्रुपदकुमार धृष्टद्युम्न द्रोणाचार्य के साथ जूझ रहे हैं और उनके विनाश के लिये यथाशक्ति चेष्टा कर रहे हैं। आज महासमर में इनके जैसे रूप दिखायी देते हैं, उनसे यह ज्ञात होता है कि रणभूमि में कुपित हुए धृष्टद्युम्न सब प्रकार से द्रोणाचार्य का वध कर डालेंगे। इसलिये तुम सब लोग एक साथ होकर कुम्भजन्मा द्रोणाचार्य के साथ युद्ध करो'। युधिष्ठिर की यह आज्ञा पाकर सृंजय महारथी द्रोणाचार्य को मार डालने की अभिलाषा से पूर्ण सावधान हो उन पर टूट पड़े। महारथी द्रोणाचार्य ने मरने का निश्चय करके उन समस्त आक्रमणकारियों का बड़े वेग से सामना किया। सत्यप्रतिज्ञ द्रोणाचार्य के आगे बढ़ते ही पृथ्वी कांपने लगी और वज्रपात की आवाज के साथ ही प्रचण्ड आंधी चलने लगी, जो सारी सेना को डरा रही थी। सूर्यमण्डल से बड़ी भारी उल्का निकलकर दोनों सेनाओं को प्रकाशित करती और महान भय की सूचना-सी देती हुई पृथ्वी पर गिर पड़ी। माननीय नरेश! द्रोणाचार्य के शस्त्र जलने लगे, रथ से बड़े जोर की आवाज उठने लगी और घोड़े आंसू बहाने लगे। महारथी द्रोणाचार्य उस समय तेजोहीन से हो रहे थे। उनकी बायीं आंख और बायीं भुजा फड़क रही थी। वे युद्ध में अपने सामने धृष्टद्युम्न को देखकर मन ही मन उदास हो गये। साथ ही ब्रह्मवादी महर्षियों के ब्रह्मलोक में चलने के संबंध में कहे हुए वचनों का स्मरण करके उन्होंने उत्तम युद्ध के द्वारा अपने प्राणों को त्याग देने का विचार किया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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