महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 170 श्लोक 1-14

सप्‍तत्‍यधिकशततम (170) अध्‍याय: उद्योग पर्व (रथातिरथसंख्‍या पर्व)

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महाभारत: उद्योग पर्व: सप्‍तत्‍यधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-14 का हिन्दी अनुवाद

पाण्‍डव पक्ष के रथियों और महारथियों का वर्णन तथा विराट और द्रुपद की प्रशंसा

  • भीष्‍मजी कहते हैं- महाराज! द्रौपदी के जो पांच पुत्र हैं, वे सबके सब महारथी हैं। विराट पुत्र उत्तर को मैं उदार रथी मानता हूँ। (1)
  • महाबाहु अभिमन्‍यु रथ-यूथपतियों का भी यूथपति है। वह शत्रुनाशक वीर समरभूमि में अर्जुन और श्रीकृष्‍ण के समान पराक्रमी है। उसने अस्‍त्रविद्या की विधिवत शिक्षा प्राप्‍त की है। वह युद्ध की विचित्र कलाएं जानता है तथा दृरढ़तापूर्वक व्रत का पालन करने वाला और मनस्‍वी है। वह अपने पिता के क्‍लेश को याद करके अवश्‍य पराक्रम दिखायेगा। (2-3)
  • मधुवंशी शूरवीर सात्‍यकि भी रथ-यूथपतियों के भी यूथपति हैं। वृष्णिवंश के प्रमुख वीरों में ये सात्‍यकि बड़े ही अमर्षशील हैं। इन्‍होंने भय को जीत लिया। (4)
  • राजन! उत्तमौजा को भी मैं उदार रथी मानता हूँ। पराक्रमी युधामन्यु भी मेरे मत में एक श्रेष्‍ठ रथी हैं। (5)
  • इनके कई हजार रथ, हाथी और घोडे़ हैं, जो कुन्‍ती के पुत्र युधिष्ठिर का प्रिय करने की इच्‍छा से अपने शरीर को निछावर करके युद्ध करेंगे। (6)
  • भारत! राजेन्‍द्र! वे पाण्‍डवों के साथ तुम्‍हारी सेना में प्रवेश करके एक-दूसरे का आह्वान करते हुए अग्नि और वायु की भाँति विचरेंगे। (7)
  • वृद्ध राजा विराट और द्रुपद भी युद्ध में अजेय हैं। इन दोनों महापराक्रमी नरश्रेष्‍ठ वीरों को मैं महारथी मानता हूँ। (8)
  • यद्यपि ये दोनों अवस्‍था की दृष्टि से बहुत बूढे हैं, तथापि क्षत्रिय-धर्म का आश्रय ले वीरों के मार्ग में स्थित हो अपनी शक्तिभर युद्ध करने का प्रयत्‍न करेंगें। (9)
  • राजेन्‍द्र! वे दोनों नरेश वीर्य और बल से संयुक्‍त श्रेष्‍ठ पुरुषों के समान सदाचारी और महान धनुर्धर हैं। पाण्‍डवों के साथ सम्‍बन्‍ध होने के कारण वे दोनों उनके स्‍नेह बन्‍धन में बंधे हुए हैं। (10)
  • कुरुश्रेष्‍ठ! कोई कारण पाकर प्राय: सभी महाबाहु मानव शूर अथवा कायर हो जाते हैं। (11)
  • परंतप! दृढ़तापूर्वक धनुष धारण करने वाले राजा विराट और द्रुपद एकमात्र वीरपथ का आश्रय ले चुके हैं। वे अपने प्राणों का त्‍याग करके भी पूरी शक्ति से तुम्‍हारी सेना के साथ टक्‍कर लेंगे। (12)
  • वे दोनों युद्ध में बड़े भयंकर हैं, अत: अपने सम्‍बन्‍ध की रक्षा करते हुए पृथक-पृथक अक्षौहिणी सेना साथ लिये महान पराक्रम करेंगे। (13)
  • भारत! महान धनुर्धर तथा जगत के सुप्रसिद्ध वीर वे दोनों नरेश अपने विश्‍वास और सम्‍मान की रक्षा करते हुए शरीर की परवा न करके यु‍द्धभूमि में महान पुरुषार्थ प्रकट करेंगे। (14)


इस प्रकार श्री महाभारते उद्योगपर्वणि रथातिरथसंख्‍यानपर्व में एक सौ सत्‍तरवां अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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