महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 15 श्लोक 1-20

पंचदश (15) अध्‍याय: उद्योग पर्व (सेनोद्योग पर्व)

Prev.png

महाभारत: उद्योग पर्व: पंचदश अध्याय: श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद

शल्य कहते हैं- युधिष्ठिर! शचीदेवी के ऐसा कहने पर भगवान इन्द्र ने पुनः उनसे कहा- देवि! यह पराक्रम करने का समय नहीं है। आजकल नहुष बहुत बलवान हो गया है। भामिनि! ऋषियों ने हव्य और कव्य देकर उसकी शक्ति को बहुत बढ़ा दिया है। अतः मैं यहाँ नीति से काम लूँगा। देवि! तुम उसी नीति का पालन करो। 'शुभे! तुम्हें गुप्तरूप से यह कार्य करना है। कहीं (भी इसे) प्रकट न करना। सुमध्यमे! तुम एकान्त में नहुष के पास जाकर कहो, जगतपत्ये! आप दिव्य ऋषियानपर बैठकर मेरे पास आइये। ऐसा होने पर मैं प्रसन्नतापूर्वक आपके वश में हो जाऊँगी।' देवराज के इस प्रकार आदेश देने पर कमल नयनी पत्नी शची 'एवमस्तु' कहकर नहुष के पास गयी। उन्हें देखकर नहुष मुसकराया और इस प्रकार बोला- 'वरारोहे! तुम्हारा स्वागत है। शुचिस्म्तिे! कहो,तुम्हारी क्या सेवा करूँ? कल्याणि! मैं तुम्हारा भक्त हूँ, मुझे स्वीकार करो। मनस्विनि! तुम क्या चाहती हो? सुमध्यमे! तुम्हारा जो भी कार्य होगा, उसे मैं सिद्ध करूँगा। सुश्रोणि! तुम्हें मुझसे लज्जा नहीं करनी चाहिये। मुझ पर विश्वास करो। देवि! मैं सत्य की शपथ खाकर कहता हूँ, तुम्हारी प्रत्येक आज्ञा का पालन करूँगा।

इन्द्राणी बोली- जगत्पते! आपके साथ जो मेरी शर्त हो चुकी है, उसे मैं पूर्ण करना चाहती हूँ। सूरेश्वर! फिर तो आप ही मेरे पति होंगे। देवराज! मेरे हृदय में एक कार्य की अभिलाषा है, उसे बताती हूँ, सुनिये। राजन! यदि आप मेरे इस प्रिय कार्य को पूर्ण कर देंगे, प्रेमपूर्वक कही हुई मेरी यह बात मान लेंगे तो मैं आपके अधीन हो जाऊँगी। सुरेश्वर! पहले जो इन्द्र थे, उनके वाहन हाथी, घोडे़ तथा रथ आदि रहे हैं, परंतु आपका वाहन उनसे सर्वथा विलक्षण-अपूर्व हो, ऐसी मेरी इच्छा है। वह वाहन ऐसा होना चाहिये, जो भगवान विष्णु, रुद्र, असुर तथा राक्षसों के भी उपयोग में न आया हो। प्रभो! महाभाग सप्तर्षि एकत्र होकर शिबिका द्वारा आपका वहन करें। राजन! यही मुझे अच्छा लगता है। आप अपने पराक्रम से तथा दृष्टिपात करने मात्र से सबका तेज हर लेते हैं। देवताओं तथा असुरो में कोई भी आपकी समानता करने वाला नहीं है। कोई कितना ही शक्तिशाली क्यों न हो, आपके सामने ठहर नहीं सकता है।

शल्य कहते हैं- युधिष्ठिर! इन्द्राणी के ऐसा कहने पर देवराज नहुष बड़े प्रसन्न हुए और उस सती-साध्वी देवी से इस प्रकार बोले। नहुष ने कहा- सुन्दरि! तुमने तो यह अपूर्व वाहन बताया। देवि! मुझे भी वही सवारी अधिक पसंद है। सुमुखि! मैं तुम्हारे वश में हूँ। जो ऋषियों को भी अपना वाहन बना सके उस पुरुष में थोड़ी शक्ति नहीं होती है। मैं तपस्वी, बलवान तथा भूत, भविष्य और वर्तमान तीनों कालों का स्वामी हूँ। मेरे कुपित होने पर यह संसार मिट जायेगा। मुझ पर ही सब कुछ टिका हुआ है। शुचिस्मिते! यदि मैं क्रोध में भर जाऊँ तो यह देवता, दानव, गन्धर्व, किन्नर, नाग, राक्षस और सम्पूर्ण लोक मेरा सामना नहीं कर सकते है। मैं अपनी आँख से जिसको देख लेता हूँ, उसका तेज हर लेता हूँ। अतः देवि! मैं तुम्हारी आज्ञा का पालन करूँगा, इसमें संशय नहीं है। सम्पूर्ण सप्तर्षि और ब्रह्मर्षि मेरी पालकी ढोयेंगे। वरवर्णिनि! मेरे माहात्मय तथा समृद्धि को तुम प्रत्यक्ष देख लो।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः