महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 15 श्लोक 21-33

पंचदश (15) अध्‍याय: उद्योग पर्व (सेनोद्योग पर्व)

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महाभारत: उद्योग पर्व: पंचदश अध्याय: श्लोक 21-33 का हिन्दी अनुवाद

शल्य कहते हैं- राजन! सुन्दर मुखवाली शची देवी से ऐसा कहकर नहुष ने उन्‍हें विदा कर दिया और यम नियम का पालन करने वाले बड़े-बड़े ऋषि-मुनियों का अपमान करके अपनी पालकी में जोत दिया। वह ब्राह्मण द्रोही नरेश बल पाकर उन्मत्त हो गया था। मद और बल से गर्वित हो स्वेच्छाचारी दुष्टात्मा नहुष ने उन महर्षियों को अपना वाहन बनाया। उधर नहुष से विदा लेकर इन्द्राणी बृहस्पति के यहाँ गयीं और इस प्रकार बोलीं- देवगुरो! नहुष ने मेरे लिये जो समय निश्चित किया है, उसमें थोड़ा ही शेष रह गया है। 'आप शीघ्र इन्द्र का पता लगाइये। मैं आपकी भक्त हूँ। मुझ पर दया कीजिये।' तब भगवान बृहस्पति ने 'बहुत अच्छ' कहकर उनसे इस प्रकार कहा- 'देवि! तुम दुष्टात्मा नहुष से डरो मत। यह नराधम अब अधिक समय तक यहाँ ठहर नहीं सकेगा। इसे गया हुआ ही समझो।' 'शुभे! यह पापी धर्म को नहीं जानता। अतः महर्षियों को अपना वाहन बनाने के कारण शीघ्र नीचे गिरेगा। इसके सिवा मैं भी इस दुर्बुधि नहुष के विनाश के लिये एक यज्ञ करूँगा। साथ ही इन्द्र का भी पता लगाऊँगा। तुम डरो मत तुम्हारा कल्याण होगा।' तदनन्तर महातेजस्वी बृहस्पति ने देवराज की प्राप्ति के लिये विधि पूर्वक अग्नि को प्रज्वलित करके उसमें उत्‍तम हविष्य की आहुति दी। राजन! अग्नि में आहुति देकर उन्होंने अग्निदेव से कहा- 'आप इन्द्रदेव का पता लगाइये।' उस हवन कुण्ड से साक्षात भगवान अग्निदेव प्रकट होकर अद्भुत स्त्रीवेष धारण करके वहीं अन्तर्धान हो गये। मन के समान तीव्र गतिवाले अग्निदेव सम्पूर्ण दिशाओं, विदिशाओं, पर्वतों और वनों तथा भूतल और अकाश में भी इन्द्र की खोज करके पलभर में बृहस्पिति के पास लौट आये।

अग्निदेव बोले- बृहस्पते! मैं देवराज को तो इस संसार में कहीं नहीं देख रहा हूँ, केवल जल शेष रह गया है, जहाँ उनकी खोज नहीं की है। परन्तु मैं कभी भी जल में प्रवेश करने का साहस नहीं कर सकता। ब्रह्मन्! जल में मेरी गति नहीं है। इसके सिवा तुम्हारा दूसरा कौंन कार्य मैं करूँ? तब देवगुरु ने कहा- 'महाद्युते! आप जल में भी प्रवेश कीजिये।' अग्निदेव बोले- मैं जल में नहीं प्रवेश कर सकूँगा; क्योंकि उसमें मेरा विनाश हो जायेगा! महातेजस्वी बृहस्पते! मैं तुम्हारी शरण में आया हूँ। तुम्हारा कल्याण हो।[1]जल से अग्नि,ब्राह्म्ण से क्षत्रिय तथा पत्थर से लोहे की उत्पत्ति हुई है। इनका तेज सर्वत्र काम करता है। परंतु अपने कारण भूत पदार्थों में आकर बुझ जाता है।

इस प्रकार श्रीमहाभारत के उद्योगपर्व के अन्तर्गत सेनोद्योगपर्व में पुरोहित प्रस्थान विषयक पंद्रहवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मुझे जल में जाने के लिये न कहो।

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