महाभारत स्‍वर्गारोहण पर्व अध्याय 5 श्लोक 1-20

पंचम (5) अध्‍याय: स्‍वर्गारोहण पर्व

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महाभारत स्‍वर्गारोहण पर्व पंचम अध्याय: श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद


भीष्‍म आदि वीरों का अपने-अपने मूल स्‍वरूप में मिलना और महाभारत का उपसंहार तथा माहात्‍म्‍य

जनमेजय ने पूछा- ब्रह्मन! महात्मा भीष्म और द्रोण, राजा धृतराष्ट्र, विराट, द्रुपद, शंख, उत्तर, धृष्टकेतु, जयत्सेन, राजा सत्यजित, दुर्योधन के पुत्र, सुबलपुत्र शकुनि, कर्ण के पराक्रमी पुत्र, राजा जयद्रथ तथा घटोत्कच आदि तथा दूसरे जो नरेश यहाँ नहीं बताये गये हैं और जिनका नाम लेकर यहाँ वर्णन किया गया है, वे सभी तेजस्वी शरीर धारण करने वाले वीर राजा स्वर्ग लोक में कितने समय तक एक साथ रहे? यह मुझे बताइये। द्विजश्रेष्ठ! क्‍या उन्हें वहाँ सनातन स्थान की प्राप्ति हुई थी? अथवा कर्मों का अन्त होने पर वे पुरुषश्रेष्ठ किस गति को प्राप्त हुए? विप्रवर! मैं आपके मुख से इस विषय को सुनना चाहता हूँ; क्‍योंकि आप अपनी उद्दीप्त तपस्या से सब कुछ देखते हैं।

सौति कहते हैं- राजा जनमेजय के इस प्रकार पूछने पर महात्मा व्‍यास की आज्ञा ले ब्रह्मर्षि वैशम्पायन ने राजा से इस प्रकार कहना आरम्भ किया।

वैशम्पायन जी बोले- राजन! कर्मों का भोग समाप्त हो जाने पर सभी लोग अपनी प्रकृति (मूल कारण) को ही प्राप्त हो जाते हैं; (कोई-कोई ही अपने कारण में विलीन होता है) यदि पूछो, क्‍या मेरा प्रश्न असंगत है? तो इसका उत्तर यह है कि जो प्रकृति को प्राप्त नहीं हैं, उनके उद्देश्य से तुम्हारा यह प्रश्न सर्वथा ठीक है। राजन! भरतश्रेष्ठ! यह देवताओं का गूढ़ रहस्य है। इस विषय में दिव्‍य नेत्र वाले, महातेजस्वी, प्रतापी मुनि व्‍यास जी ने जो कहा है, उसे बताता हूँ; सुनो- कुरुनन्दन! जो सब कर्मों की गति को जानने वाले, अगाध बुद्धि सम्पन्न एवं सर्वज्ञ हैं, उन महान व्रतधारी, पुरातन मुनि, पराशरनन्दन व्‍यास जी ने तो मुझसे यही कहा है कि 'वे सभी वीर कर्मभोग के पश्चात अन्ततोगत्वा अपने मूल स्वरूप में ही मिल गये थे। महातेजस्वी, परम कान्तिमान भीष्म वसुओं के स्वरूप में ही प्रविष्ट हो गये।'

भरतभूषण! यही कारण है कि वसु आठ ही देखे जाते हैं (अन्यथा भीष्म जी को लेकर नौ वसु हो जाते) आचार्य द्रोण ने आंगिरसों में श्रेष्ठ बृहस्पति जी के स्वरूप में प्रवेश किया। हृदिकपुत्र कृतवर्मा मरुद्गणों में मिल गया। प्रद्युम्न जैसे आये थे, उसी तरह सनत्कुमार के स्वरूप में प्रविष्ट हो गये। धृतराष्ट्र ने धनाध्‍याक्ष कुबेर के दुर्लभ लोकों को प्राप्त किया। उनके साथ यशस्विनी गांधारी देवी भी थीं। राजा पांडु अपनी दोनों पत्नियों के साथ महेन्द्र के भवन में चले गये। राजा विराट, द्रुपद, धृष्टकेतु, निशठ, अक्रूर, साम्ब, भानु, कम्प, विदूरथ, भूरिश्रवा, शल, पृथ्‍वीपति भूरि, कंस, उग्रसेन, वसुदेव और अपने भाई शंख के साथ नरश्रेष्ठ उत्तर- ये सभी सत्पुरुष विश्वेदेवों के स्वरूप में मिल गये।

चन्द्रमा के महातेजस्वी और प्रतापी पुत्र जो वर्चा हैं, वे ही पुरुषसिंह अर्जुन के पुत्र होकर अभिमन्यु नाम से विख्‍यात हुए थे। उन्होंने क्षत्रिय धर्म के अनुसार ऐसा युद्ध किया था, जैसा दूसरा कोई पुरुष कभी नहीं कर सका था। उन धर्मात्मा महारथी अभिमन्यु ने अपना कार्य पूरा करके चन्द्रमा में ही प्रवेश किया। पुरुषप्रवर कर्ण जो अर्जुन के द्वारा मारे गये थे, सूर्य में प्रविष्ट हुए। शकुनि ने द्वापर में और धृष्टद्युम्न ने अग्नि के स्वरूप में प्रवेश किया।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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