महाभारत स्त्री पर्व अध्याय 18 श्लोक 1-18

अष्टादश (18) अध्याय: स्त्री पर्व (जलप्रदानिक पर्व)

Prev.png

महाभारत: स्त्री पर्व: अष्टादश अध्याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद


अपने अन्य पुत्रों तथा दु:शासन को देखकर गांधारी का श्रीकृष्ण के सम्मुख विलाप

गान्धारी बोलीं- माधव! जो परिश्रम को जीत चुके थे, उन मेरे सौ पुत्रों को देखो, जिन्हें रणभूमि में प्रायः भीमसेन ने अपनी गदा से मार डाला है। सबसे अधिक दुख मुझे आज यह देखकर हो रहा है कि ये मेरी बालबहुऐं, जिनके पुत्र भी मारे जा चुके हैं, रणभूमि में केश खोले चारों ओर अपने स्वजनों की खोज में दौड़ रही हैं। ये महल की अट्टालिकाओं में आभूषणभूषित चरणों द्वारा विचरण करने वाली थीं; परंतु आज विपत्ति की मारी हुई ये इस खून से भीगी हुई वसुधा का स्पर्श कर रही हैं। ये दुख से आतुर हो पगली स्त्रियों के सामन झूमती हुई सब ओर विचरती हैं तथा बड़ी कठिनाई से गीधों, गीदड़ों और कौओं को लाशों के पास से दूर हटा रही हैं। यह पतली कमर वाली सर्वांग सुन्दरी दूसरी वधु युद्धस्थल का भयानक द्श्‍य देखकर दुखी होकर पृथ्वी पर गिर पड़ती हैं। महाबाहो! यह लक्ष्मण की माता एक भूमिपाल की बेटी है, इस राजकुमारी की दशा देखकर मेरा मन किसी तरह शांत नहीं होता है।। कुछ स्त्रियां रणभूमि में मारे गये अपने भाईयों को, कुछ पिताओं को और कुछ पुत्रों को देखकर उन महाबाहो वीरों को पकड़ लेती और वहीं गिर पड़ती हैं। अपराजित वीर! इस दारुण संग्राम में जिनके बन्धु बान्धव मारे गये हैं उन अधेड़ और बूढ़ी स्त्रियों का यह करुणाजनक क्रन्धन सुनो। महाबाहो। देखो, यह स्त्रियां परिश्रम और मोह से पीड़ित हो टूटे हुए रथों की बैठकों तथा मारे गये हाथी घोड़े की लाशों का सहारा लेकर खड़ी हैं।

श्रीकृष्ण! देखो, वह दूसरी स्त्री किसी आत्मीयजन के मनोहर कुण्डलों से सुशोभित हो और उंची नासिका वाले कटे हुए मस्तक को लेकर खड़ी है। अनघ! मैं समझती हूँ कि इन अनिन्ध सुन्दरी अवलाओं ने तथा मन्दबुद्धि वाली मैंने भी पूर्व जन्मों में कोई बड़ा भारी पाप किया है, जिसके फलस्वरूप धर्मराज ने हम लोगों को बड़ी भारी विपत्ति में डाल दिया है। जर्नादन! वृष्णिनन्दन! जान पड़ता है कि किये हुए पुण्य और पाप कर्मों का उनके फल का उपभोग किये बिना नाश नहीं होता है। माधव! देखो, इन महिलाओं की नई अवस्था है। इनके वक्ष स्थल और मुख दर्शनीय हैं। इनकी आंखों की वरुणियां और सिर के केश काले हैं। ये सब की सब कुलीन और सलज हैं। ये हंश के समान गद्गद स्वर में बोलती हैं; परंतु आज दुख और शोक के मोहित हो चहचहाती सारसियों के समान रोती विलखती हुई पृथ्वी पर गिर पड़ी हैं। कमलनयन। खिले हुए कमल के समान प्रकाशित होने वाले युवतियों के इन सुन्दर मुखों को यह सूर्य देव संतप्त कर रहे हैं। वासुदेव! मतवाले हाथी के समान घमण्ड में चूर रहने वाले मेरे ईश्‍यालु पुत्रों की इन रानियों को आज साधारण लोग देख रहे हैं। गोविन्द! देखो, मेरे पुत्रों की ये सौ चन्द्रकार चिह्नों से सुशोभित ढालें, सूर्य के समान तेजस्विनी ध्वजाऐं, स्ववर्ण में कवच, सोने के निष्क तथा सिरस्त्राण घी की उत्तम आहुति पाकर प्रज्वलित हुई अग्नियों के समान पृथ्वी पर देदीप्तमान हो रहे हैं।


Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः