महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 43 श्लोक 1-19

त्रिचत्वारिंश (43) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

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महाभारत: भीष्म पर्व: त्रिचत्वारिंश अध्याय: श्लोक 1-19 का हिन्दी अनुवाद

गीता का माहात्मय तथा युधिष्ठिर का भीष्म, द्रोण, कृप और शल्य से अनुमति लेकर युद्ध के लिये तैयार होना

वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! अन्य बहुत से शास्त्रों का संग्रह करने की क्या आवश्यकता है। गीता का ही अच्छी तरह से गान[1] करना चाहिये; क्योंकि वह स्वयं पद्मनाभ भगवान के साक्षात मुखकमल से निकली हुई है। गीता सर्वशास्त्रमयी है।[2] भगवान श्रीहरि सर्वदेवमय हैं। गंगा सर्वतीर्थमयी है और मनु (उनका धर्मशास्त्र) सर्व वेदमय हैं। गीता, गंगा, गायत्री और गोविन्द- इन ‘ग’ कारयुक्त चार नामों को हृदय में धारण कर लेने पर मनुष्य का फिर इस संसार में जन्म नहीं होता। इस गीता में छः सौ बीस श्लोक भगवान श्रीकृष्ण ने कहे हैं, सत्तावन श्लोक अर्जुन के कहे हुए हैं, सड़सठ श्लोक संजय ने कहे हैं और एक श्लोक धृतराष्ट्र का कहा हुआ है, यह गीता का मान बताया जाता है। भारतरूपी अमृतराशि के सर्वस्व सारभूत गीता का मन्थन करके उसका सार निकालकर श्रीकृष्ण ने अर्जुन के मुख में (कानों द्वारा मन-बुद्धि में) डाल दिया है।[3]

संजय कहते हैं- राजन! तदनन्तर अर्जुन को गाण्डीव धनुष और बाण धारण किये देख पाण्डव महारथियों, सोमकों तथा उनके अनुगामी सैनिकों ने पुनः बड़े जोर से सिंहनाद किया। साथ ही उन सभी वीरों ने प्रसन्नतापूर्वक समुद्र से प्रकट होने वाले शंखों को बजाया। तदनन्तर भेरी, पेशी, क्रकच और नरसिंहे आदि बाजे सहसा बज उठे। इससे वहाँ महान शब्द गूंजने लगा। नरेश्वर! उस समय देवता, गन्धर्व, पितर, सिद्ध, चारण तथा महाभाग महर्षिगण देवराज इन्द्र को आगे करके उस भीषण मार-काट को देखने के लिये एक साथ वहाँ आये। राजन! तदनन्तर वीर राजा युधिष्ठिर ने समुद्र के समान उन दोनों सेनाओं को युद्ध के लिये उपस्थित और चंचल हुई देख कवच खोलकर अपने उत्तम आयुधों को नीचे डाल दिया और रथ से शीघ्र उतरकर वे पैदल ही हाथ जोडे़ पितामह भीष्म को लक्ष्य करके चल दिये।

धर्मराज युधिष्ठिर मौन एवं पूर्वाभिमुख हो शत्रुसेना की और चले गये। कुन्तीपुत्र धनंजय उन्हें शत्रु-सेना की ओर जाते देख तुरन्त रथ से उतर पड़े और भाईयों सहित उनके पीछे-पीछे जाने लगे। भगवान श्रीकृष्ण भी उनके पीछे गये तथा उन्हीं में चित्त लगाये रहने वाले प्रधान-प्रधान राजा भी उत्सुक होकर उनके साथ गये। अर्जुन ने पूछा- राजन! आपने क्या निश्चय किया है कि हम लोगों को छोड़कर आप पूर्वाभिमुख हो पैदल ही शत्रुसेना की ओर चल दिये हैं। भीमसेन ने भी पूछा- महाराज! पृथ्वीराज! कवच और आयुध नीचे डालकर भाईयों को भी छोड़कर कवच आदि से सुसज्‍ज्‍ति हुई शत्रु-सेना में कहां जायेंगे? नकुल ने पूछा- भारत! आप मेरे बड़े भाई हैं। आपके इस प्रकार शत्रु सेना की ओर चल देने पर भारी भय मेरे हृदय को पीड़ित कर रहा है। बताईये, आप कहां जायेंगे? सहदेव ने पूछा- नरेश्वर! इस रणक्षेत्र में जहाँ शत्रु सेना का समूह जुटा हुआ है और महान भय उपस्थित है, आप हमे छोड़कर शत्रुओं की ओर कहां जायेंगे?

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्रवण, कीर्तन, पठन-पाठन, मनन और धारण
  2. गीता में सब शास्त्रों के सार-तत्त्व का समावेश है
  3. उपर्युक्त पाँच श्लोक कितनी ही प्रतियों में नहीं हैं और कितनी ही प्रतियों में हैं।

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